असहयोग आंदोलन पर निबंध

  1. {निबंध} महात्मा गांधी निबंध मराठी। Mahatma Gandhi Nibandh Marathi
  2. भारत छोड़ो आंदोलन पर निबंध
  3. खिलाफत और असहयोग आंदोलन
  4. GS1 PYQ (मुख्य उत्तर लेखन): असहयोग आंदोलन
  5. खिलाफत और असहयोग आंदोलन
  6. GS1 PYQ (मुख्य उत्तर लेखन): असहयोग आंदोलन
  7. {निबंध} महात्मा गांधी निबंध मराठी। Mahatma Gandhi Nibandh Marathi
  8. भारत छोड़ो आंदोलन पर निबंध


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{निबंध} महात्मा गांधी निबंध मराठी। Mahatma Gandhi Nibandh Marathi

१) महात्मा गांधी पर मराठी निबंध (mahatma gandhi essay in marathi) देशाच्या स्वातंत्र्यात महत्त्वाची भूमिका बजावणारे, सर्वांना सत्य आणि अहिंसेच्या मार्ग दाखवणारे गांधीजी अर्थात महात्मा गांधी यांना देशाचे राष्ट्रपिता म्हणून संबोधले जाते. गांधीजींनी भारताच्या स्वातंत्र्यलढ्यात महत्वाचे योगदान दिले. गांधीजींच्या वचनांचा भारतीय समाजावर खोल प्रभाव आहे. त्यांनी आपल्या विचारसरणीने भारताला एकत्रित केले. समाजातील अनेक कुरितीना संपवले. गांधीजी यांच्या जन्म 2 ऑक्टोंबर 1869 साली गुजरात मधील पोरबंदर या गावात झाला. इंग्रजांना भारतातून बाहेर काढण्यासाठी गांधीजींनी अनेक आंदोलने केली. त्यांनी अहिंसेचा मार्ग अवलंबला. असहयोग आंदोलन, मिठाचा सत्याग्रह, दलित आंदोलन, भारत छोडो आंदोलन, चंपारण सत्याग्रह इत्यादी ब्रिटिश शासनाविरुद्ध ची आंदोलने करून त्यांनी देशाच्या स्वातंत्र्यात योगदान दिले. गांधीजी एक कुशल राजनितिक तर होतेच परंतु ते अतिशय चांगले लेखक देखील होते. आपल्या जीवनातील चढ-उतार त्यांनी लेखणीच्या सहाय्याने मांडले. महात्मा गांधी यांनी हरिजन, इंडियन ऑपिनियन, यंग इंडिया इ. वृत्तपत्रांचे संपादक म्हणून काम केले. गांधीजींनी लिहिलेले प्रमुख पुस्तक हिंद स्वराज्य, दक्षिण आफ्रिकेत सत्याग्रह, माझ्या स्वप्नातील भारत, ग्रामस्वराज्य व माझे सत्याचे प्रयोग इत्यादी आहेत. गांधीजींची ही पुस्तके आज देखील समाजाला नागरिक घडवण्यासाठी मदत करीत आहे. इंग्रजांना भारतातून काढण्यासाठी 9 ऑगस्ट 1942 ला गांधीजींनी शेवटचे आंदोलन 'भारत छोडो' आंदोलनास सुरुवात केली. भारत छोडो स्वातंत्र्य आंदोलन त्या काळातील सर्वात मोठे जनांदोलन होते. या आंदोलनात हजारोंच्या संख्येने स्वातंत्र्यसेनानी मारले गेले. इंग्रजांनी गांधीजी सोबत काँग्रेस...

भारत छोड़ो आंदोलन पर निबंध

भारत छोड़ो आंदोलन पर निबंध | Essay on Quit India Movement 1934 के आसपास सविनय अवज्ञा आंदोलन की समाप्ति के बाद कांग्रेस के अंदर गंभीर मतभेद पैदा हो गए, जैसे इससे पहले असहयोग आंदोलन की वापसी के बाद हुए थे । जहाँ गांधी सक्रिय राजनीति से कुछ समय के लिए अलग हो गए, वहीं समाजवादी और दूसरे वामपंथी तत्त्वों ने मई 1934 में कांग्रेस समाजवादी पार्टी (कांसपा) का गठन किया; इनमें सबसे प्रमुख जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, युसुफ मेहर अली, नरेंद्र देव और मीनू मसानी थे । समाजवाद से सहानुभूति होने के बावजूद औपचारिक रूप से नेहरू कभी इस दल में शामिल नहीं हुए, जिसकी ”विचारधारा” में सुमित सरकार के शब्दों में ”अस्पष्ट और घालमेल उग्र राष्ट्रवाद से लेकर मार्क्सवादी वैज्ञानिक समाजवाद की खासी जोरदार पैरवी तक” के तत्त्व शामिल थे । ADVERTISEMENTS: तय हुआ कि कांसपा, जिसने संयुक्त प्रांत जैसे प्रांतों में काफ़ी जोर पकड़ा, कांग्रेस के भीतर रहकर ही काम करेगी, उसके रुझान को एक समाजवादी कार्यक्रम की ओर मोड़ने की और रूढ़िवादी ”दक्षिणपंथियों” के प्रभुत्व को कम करने के प्रयास करेगी । लेकिन कांग्रेस का अंदरूनी विभाजन जल्द ही दो मुद्दों पर केंद्रित हो गया: विधायिकाओं में प्रवेश और पदों के स्वीकार पर । यह टकराव काफी तेज हो गया, पर 1936 की लखनऊ कांग्रेस में किसी तरह इसे टाल दिया गया । यहाँ राजेंद्र प्रसाद और वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में और गांधी के आशीर्वाद से प्रतिनिधियों के बहुमत ने इस राय को स्वीकार किया कि 1935 के कानून के अंतर्गत होने वाले चुनावों में भागीदारी और फिर प्रांतों में पद स्वीकार करने पर कांग्रेस के गिरते मनोबल को ऐसे समय में सहारा मिलेगा, जब सीधी कार्रवाई का विकल्प सामने नहीं था । अगस्त 19...

खिलाफत और असहयोग आंदोलन

टैग्स: • • • • परिचय • जन आंदोलन: वर्ष 1919-1922 में भारत में ब्रिटिश शासन का विरोध करने हेतु खिलाफत और असहयोग, दो जन आंदोलन आयोजित किये गए थे। • दोनों ही आंदोलनों में भिन्न-भिन्न मुद्दें होने के बावज़ूद अहिंसा और असहयोग की एक एकीकृत योजना को अपनाया गया। • इस अवधि में कॉन्ग्रेस और मुस्लिम लीग का एकीकरण देखा गया। इन दोनों पार्टियों के संयुक्त प्रयास के तहत कई राजनीतिक प्रदर्शन आयोजित किये गए। • आंदोलनों के कारण: निम्नलिखित कारकों ने दो आंदोलनों की पृष्ठभूमि के रूप में कार्य किया: • सरकार के क्रूरतापूर्ण कार्य: रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act), पंजाब में मार्शल लॉ लागू करने और जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) ने विदेशी शासन के क्रूर और असभ्य चेहरे को उजागर करने का कार्य किया। • पंजाब में हो रहे अत्याचारों की जाँच हेतु गठित हंटर आयोग (Hunter Commission) की पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट। • हाउस ऑफ लॉर्ड्स (ब्रिटिश संसद के) में जलियांवाला बाग हत्याकांड को लेकर जनरल डायर की कार्रवाई को उचित ठराया जाना। • असंतुष्ट भारतीय: द्वैध शासन की अपनी कुविचारित योजना के साथ मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (Montagu-Chelmsford Reforms) भारतीयों की स्वशासन की बढ़ती मांग को पूरा करने में विफल रहे। • आर्थिक कठिनाइयाँ: प्रथम विश्व युद्ध के बाद के वर्षों में देश की आर्थिक स्थिति विशेषकर वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि, भारतीय उद्योगों के उत्पादन में कमी, करों और किराये के बोझ में वृद्धि आदि के साथ और खतरनाक हो गई थी। • समाज के लगभग सभी वर्गों को युद्ध के कारण आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ा रहा था जिससे लोगों में ब्रिटिश विरोधी रवैया और मज़बूत हो गया। खिलाफत का मुद्दा: • अंग्रेजों के खिलाफ तुर्की का गठब...

GS1 PYQ (मुख्य उत्तर लेखन): असहयोग आंदोलन

प्रश्न. 1920 के असहयोग आंदोलन की उपलब्धियों और विफलताओं पर चर्चा करें। स्वतंत्रता-पूर्व भारत में बाद के स्वतंत्रता आंदोलनों पर इसका क्या प्रभाव पड़ा? (250 शब्द) "इस प्रश्न के समाधान को देखने से पहले आप इस प्रश्न को पहले स्वयं आजमा सकते हैं" परिचय • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में। असहयोग के कार्यक्रम का समर्थन किया गया था। • एक महत्वपूर्ण परिवर्तन किया गया था, अब तक कांग्रेस अपने लक्ष्य के रूप में संवैधानिक साधनों के माध्यम से स्वशासन प्राप्त करने की मांग कर रही थी। • नागपुर अधिवेशन में, कांग्रेस ने शांतिपूर्ण और वैध तरीकों से स्वराज की प्राप्ति का फैसला किया, इस प्रकार खुद को एक अतिरिक्त संवैधानिक जन संघर्ष के लिए प्रतिबद्ध किया। • गांधी ने घोषणा की कि यदि असहयोग कार्यक्रम को पूरी तरह लागू कर दिया जाए तो एक वर्ष के भीतर स्वराज की शुरुआत हो जाएगी। उपलब्धियों • गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन एक जन आंदोलन था जिसे 1857 के महान विद्रोह से पहले और बाद में कभी नहीं देखा गया था। • असहयोग आंदोलन के साथ, राष्ट्रवादी भावनाएं देश के कोने-कोने तक पहुंच गईं और आबादी के हर तबके का राजनीतिकरण कर दिया- कारीगर, किसान, छात्र, शहरी गरीब, महिलाएं, व्यापारी आदि। • पुरुषों और महिलाओं के इस राजनीतिकरण ने राष्ट्रीय आंदोलन को एक क्रांतिकारी चरित्र प्रदान किया। • जन संघर्ष के माध्यम से सत्याग्रह द्वारा ब्रिटिश शासन के अजेय होने के मिथक को चुनौती दी गई थी। • इसने स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा दिया जिससे भारतीय उत्पादकों को मदद मिली और ब्रिटेन के आर्थिक और वाणिज्यिक हितों को नुकसान पहुंचा। विफलताओं • मध्यम वर्ग के लोगों ने शुरुआत में आंदोलन का नेतृत्व किया लेकिन बाद में उन्होंने गांध...

खिलाफत और असहयोग आंदोलन

टैग्स: • • • • परिचय • जन आंदोलन: वर्ष 1919-1922 में भारत में ब्रिटिश शासन का विरोध करने हेतु खिलाफत और असहयोग, दो जन आंदोलन आयोजित किये गए थे। • दोनों ही आंदोलनों में भिन्न-भिन्न मुद्दें होने के बावज़ूद अहिंसा और असहयोग की एक एकीकृत योजना को अपनाया गया। • इस अवधि में कॉन्ग्रेस और मुस्लिम लीग का एकीकरण देखा गया। इन दोनों पार्टियों के संयुक्त प्रयास के तहत कई राजनीतिक प्रदर्शन आयोजित किये गए। • आंदोलनों के कारण: निम्नलिखित कारकों ने दो आंदोलनों की पृष्ठभूमि के रूप में कार्य किया: • सरकार के क्रूरतापूर्ण कार्य: रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act), पंजाब में मार्शल लॉ लागू करने और जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) ने विदेशी शासन के क्रूर और असभ्य चेहरे को उजागर करने का कार्य किया। • पंजाब में हो रहे अत्याचारों की जाँच हेतु गठित हंटर आयोग (Hunter Commission) की पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट। • हाउस ऑफ लॉर्ड्स (ब्रिटिश संसद के) में जलियांवाला बाग हत्याकांड को लेकर जनरल डायर की कार्रवाई को उचित ठराया जाना। • असंतुष्ट भारतीय: द्वैध शासन की अपनी कुविचारित योजना के साथ मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (Montagu-Chelmsford Reforms) भारतीयों की स्वशासन की बढ़ती मांग को पूरा करने में विफल रहे। • आर्थिक कठिनाइयाँ: प्रथम विश्व युद्ध के बाद के वर्षों में देश की आर्थिक स्थिति विशेषकर वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि, भारतीय उद्योगों के उत्पादन में कमी, करों और किराये के बोझ में वृद्धि आदि के साथ और खतरनाक हो गई थी। • समाज के लगभग सभी वर्गों को युद्ध के कारण आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ा रहा था जिससे लोगों में ब्रिटिश विरोधी रवैया और मज़बूत हो गया। खिलाफत का मुद्दा: • अंग्रेजों के खिलाफ तुर्की का गठब...

GS1 PYQ (मुख्य उत्तर लेखन): असहयोग आंदोलन

प्रश्न. 1920 के असहयोग आंदोलन की उपलब्धियों और विफलताओं पर चर्चा करें। स्वतंत्रता-पूर्व भारत में बाद के स्वतंत्रता आंदोलनों पर इसका क्या प्रभाव पड़ा? (250 शब्द) "इस प्रश्न के समाधान को देखने से पहले आप इस प्रश्न को पहले स्वयं आजमा सकते हैं" परिचय • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में। असहयोग के कार्यक्रम का समर्थन किया गया था। • एक महत्वपूर्ण परिवर्तन किया गया था, अब तक कांग्रेस अपने लक्ष्य के रूप में संवैधानिक साधनों के माध्यम से स्वशासन प्राप्त करने की मांग कर रही थी। • नागपुर अधिवेशन में, कांग्रेस ने शांतिपूर्ण और वैध तरीकों से स्वराज की प्राप्ति का फैसला किया, इस प्रकार खुद को एक अतिरिक्त संवैधानिक जन संघर्ष के लिए प्रतिबद्ध किया। • गांधी ने घोषणा की कि यदि असहयोग कार्यक्रम को पूरी तरह लागू कर दिया जाए तो एक वर्ष के भीतर स्वराज की शुरुआत हो जाएगी। उपलब्धियों • गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन एक जन आंदोलन था जिसे 1857 के महान विद्रोह से पहले और बाद में कभी नहीं देखा गया था। • असहयोग आंदोलन के साथ, राष्ट्रवादी भावनाएं देश के कोने-कोने तक पहुंच गईं और आबादी के हर तबके का राजनीतिकरण कर दिया- कारीगर, किसान, छात्र, शहरी गरीब, महिलाएं, व्यापारी आदि। • पुरुषों और महिलाओं के इस राजनीतिकरण ने राष्ट्रीय आंदोलन को एक क्रांतिकारी चरित्र प्रदान किया। • जन संघर्ष के माध्यम से सत्याग्रह द्वारा ब्रिटिश शासन के अजेय होने के मिथक को चुनौती दी गई थी। • इसने स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा दिया जिससे भारतीय उत्पादकों को मदद मिली और ब्रिटेन के आर्थिक और वाणिज्यिक हितों को नुकसान पहुंचा। विफलताओं • मध्यम वर्ग के लोगों ने शुरुआत में आंदोलन का नेतृत्व किया लेकिन बाद में उन्होंने गांध...

{निबंध} महात्मा गांधी निबंध मराठी। Mahatma Gandhi Nibandh Marathi

१) महात्मा गांधी पर मराठी निबंध (mahatma gandhi essay in marathi) देशाच्या स्वातंत्र्यात महत्त्वाची भूमिका बजावणारे, सर्वांना सत्य आणि अहिंसेच्या मार्ग दाखवणारे गांधीजी अर्थात महात्मा गांधी यांना देशाचे राष्ट्रपिता म्हणून संबोधले जाते. गांधीजींनी भारताच्या स्वातंत्र्यलढ्यात महत्वाचे योगदान दिले. गांधीजींच्या वचनांचा भारतीय समाजावर खोल प्रभाव आहे. त्यांनी आपल्या विचारसरणीने भारताला एकत्रित केले. समाजातील अनेक कुरितीना संपवले. गांधीजी यांच्या जन्म 2 ऑक्टोंबर 1869 साली गुजरात मधील पोरबंदर या गावात झाला. इंग्रजांना भारतातून बाहेर काढण्यासाठी गांधीजींनी अनेक आंदोलने केली. त्यांनी अहिंसेचा मार्ग अवलंबला. असहयोग आंदोलन, मिठाचा सत्याग्रह, दलित आंदोलन, भारत छोडो आंदोलन, चंपारण सत्याग्रह इत्यादी ब्रिटिश शासनाविरुद्ध ची आंदोलने करून त्यांनी देशाच्या स्वातंत्र्यात योगदान दिले. गांधीजी एक कुशल राजनितिक तर होतेच परंतु ते अतिशय चांगले लेखक देखील होते. आपल्या जीवनातील चढ-उतार त्यांनी लेखणीच्या सहाय्याने मांडले. महात्मा गांधी यांनी हरिजन, इंडियन ऑपिनियन, यंग इंडिया इ. वृत्तपत्रांचे संपादक म्हणून काम केले. गांधीजींनी लिहिलेले प्रमुख पुस्तक हिंद स्वराज्य, दक्षिण आफ्रिकेत सत्याग्रह, माझ्या स्वप्नातील भारत, ग्रामस्वराज्य व माझे सत्याचे प्रयोग इत्यादी आहेत. गांधीजींची ही पुस्तके आज देखील समाजाला नागरिक घडवण्यासाठी मदत करीत आहे. इंग्रजांना भारतातून काढण्यासाठी 9 ऑगस्ट 1942 ला गांधीजींनी शेवटचे आंदोलन 'भारत छोडो' आंदोलनास सुरुवात केली. भारत छोडो स्वातंत्र्य आंदोलन त्या काळातील सर्वात मोठे जनांदोलन होते. या आंदोलनात हजारोंच्या संख्येने स्वातंत्र्यसेनानी मारले गेले. इंग्रजांनी गांधीजी सोबत काँग्रेस...

भारत छोड़ो आंदोलन पर निबंध

भारत छोड़ो आंदोलन पर निबंध | Essay on Quit India Movement 1934 के आसपास सविनय अवज्ञा आंदोलन की समाप्ति के बाद कांग्रेस के अंदर गंभीर मतभेद पैदा हो गए, जैसे इससे पहले असहयोग आंदोलन की वापसी के बाद हुए थे । जहाँ गांधी सक्रिय राजनीति से कुछ समय के लिए अलग हो गए, वहीं समाजवादी और दूसरे वामपंथी तत्त्वों ने मई 1934 में कांग्रेस समाजवादी पार्टी (कांसपा) का गठन किया; इनमें सबसे प्रमुख जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, युसुफ मेहर अली, नरेंद्र देव और मीनू मसानी थे । समाजवाद से सहानुभूति होने के बावजूद औपचारिक रूप से नेहरू कभी इस दल में शामिल नहीं हुए, जिसकी ”विचारधारा” में सुमित सरकार के शब्दों में ”अस्पष्ट और घालमेल उग्र राष्ट्रवाद से लेकर मार्क्सवादी वैज्ञानिक समाजवाद की खासी जोरदार पैरवी तक” के तत्त्व शामिल थे । ADVERTISEMENTS: तय हुआ कि कांसपा, जिसने संयुक्त प्रांत जैसे प्रांतों में काफ़ी जोर पकड़ा, कांग्रेस के भीतर रहकर ही काम करेगी, उसके रुझान को एक समाजवादी कार्यक्रम की ओर मोड़ने की और रूढ़िवादी ”दक्षिणपंथियों” के प्रभुत्व को कम करने के प्रयास करेगी । लेकिन कांग्रेस का अंदरूनी विभाजन जल्द ही दो मुद्दों पर केंद्रित हो गया: विधायिकाओं में प्रवेश और पदों के स्वीकार पर । यह टकराव काफी तेज हो गया, पर 1936 की लखनऊ कांग्रेस में किसी तरह इसे टाल दिया गया । यहाँ राजेंद्र प्रसाद और वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में और गांधी के आशीर्वाद से प्रतिनिधियों के बहुमत ने इस राय को स्वीकार किया कि 1935 के कानून के अंतर्गत होने वाले चुनावों में भागीदारी और फिर प्रांतों में पद स्वीकार करने पर कांग्रेस के गिरते मनोबल को ऐसे समय में सहारा मिलेगा, जब सीधी कार्रवाई का विकल्प सामने नहीं था । अगस्त 19...