अतिशयोक्ति अलंकार के 10 उदाहरण

  1. अतिश्योक्ति अलंकार की परिभाषा, 20 उदाहरण
  2. अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण
  3. अतिश्योक्ति अलंकार की परिभाषा और उदाहरण
  4. अलंकार की परिभाषा, भेद तथा उदाहरण class 9, 10,11,12


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अतिश्योक्ति अलंकार की परिभाषा, 20 उदाहरण

• • • अतिश्योक्ति अलंकार किसे कहते है? अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा– अतिशयोक्ति शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – अतिशय+उक्ति | ‘ अतिशय’ मतलब बहुत अधिक और ‘ उक्ति‘ मतलब कह दिया अर्थात जब कोई बात बहुत बढ़ा चढ़ाकर या लोकसीमा का उल्लंघन करके कही जाए, तब वहाँ अतिश्योक्ति अलंकार होता है। अथवा काव्य में जब किसी वस्तु, व्यक्ति, या रूप सौंदर्य आदि के गुणों का वर्णन लोकसीमा से बहुत बढ़ा- चढ़ा कर प्रस्तुत किया जाए, तब वहां पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। इस बात को इस उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता जैसे – “देख सुदामा की दीन दशा करुणा करके करुणानिधि रोए, पानी परात को हाथ छुयो नहिं नैनन के जल सों पग धोए।” अब बात स्पष्ट है कि पानी और बर्तन (परात) को छुए बिना कोई भी किसी के पैर नहीं धो सकता है क्योकि मनुष्य की आँखों से इतना जल नहीं निकल सकता। ऐसा करना बिलकुल असंभव है…….लेकिन सुदामा और कृष्ण की बहुत ही गहरी मित्रता और प्रेम को व्यक्त करने के लिए ऐसा कहा गया। जब ऐसी कोई बात कही जाती कि हमें ऐसा लगता कि यह बात तो संभव ही नहीं है, और फिर भी ऐसा कहा है इसका आशय यह हुआ की बात कुछ ज्यादा ही बढ़ाचढ़ाकर कही गयी है, तब ऐसी बातों या कविताओं या उदाहरणों में अतिश्योक्ति अलंकार होता है। निम्नलिखित अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण को पढ़ो और निष्कर्ष निकालो, जो बात कही है क्या वो संभव है – दिए गए सभी अतिशयोक्ति अलंकार उदाहरण विभिन्न स्त्रोतों से लिए गए है। अतिश्योक्ति अलंकार के 20 उदाहरण– Atishyokti alankar ke udaharan निम्नलिखित है – • हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि, लंका सिगरी जल गई, गए निशाचर भाग।। • वह शेर इधर गांडीव गुण से भिन्न जैसे ही हुआ, धड़ से जयद्रथ का उधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ।। • देख लो साकेत नगरी ...

अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण

अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण अलंकार क्या है काव्य की शोभा बढ़ानेवाले उपकरणों को अलंकार करते हैं। जैसे अलंकरण धारण करने से शरीर की शोभा बढ़ जाती है, वैसे ही अलंकरण के प्रयोग से काव्य में चमक उत्पन्न हो जाती है। संस्कृत आचार्य दंडी के अनुसार ‘अलंकार काव्य का शोभाकारक धर्म है’ और आचार्य वामन के अनुसार ‘अलंकार ही सौंदर्य है।’ रीतिकालीन आचार्य केशवदास के अनुसार- ‘भूषण बिन न बिराजहीं कविता, बनिता मित्त।’ वहीं अभिनवगुप्त के अनुसार, “यदि शव को गहने पहना दिए जाएँ, या साधु सोने की छड़ी धारण कर ले तो वह सुंदर नहीं हो सकता। अथार्त अलंकार सौंदर्य की वृद्धि करता है, सुंदर की सृष्टि नहीं कर सकता।” आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, “कथन की रोचक, सुंदर और प्रभावपूर्ण प्रणाली अलंकार है। गुण और अलंकार में यह अंतर है की गुण सीधे रस का उत्कर्ष करते हैं, अलंकार सीधे रस का उत्कर्ष नहीं करते हैं।” अत: भले ही अलंकार को काव्य का आवश्यक अंग माना गया है, परंतु यह वर्णन शैली की विशेषता है। अलंकार के भेद कवि शब्द और अर्थ में विशेषता लाकर अपने काव्य को प्रभावकारी बनाते हैं। इसी आधार पर अलंकार के दो भेद किए गये हैं- क. शब्दालंकार, ख. अर्थालंकार। जब केवल शब्दों में चमत्कार पाया जाता है तब शब्दालंकार और जब अर्थ में चमत्कार होता है तब अर्थालंकार कहलाता है। इसके अतिरिक्त जहाँ शब्द और अर्थ दोनों में किसी प्रकार की विशेषता प्रतीत हो, वहाँ उभयालंकार माना जाता है। शब्दालंकार के भेद ‘शब्दालंकार 7 प्रकार के होते हैं। इनमें अनुप्रास,यमक, श्लेष तथा वक्रोक्ति मुख्य हैं।’ 1. अनुप्रास अलंकार ‘जहाँ व्यंजन वर्णों की आवृत्ति होती है वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।’ अर्थात जहाँ किसी पंक्ति के शब्दों में एक ही वर्ण की अनेक...

अतिश्योक्ति अलंकार की परिभाषा और उदाहरण

इस पेज पर आप अतिश्योक्ति अलंकार की समस्त जानकारी पढ़ने वाले हैं तो पोस्ट को पूरा जरूर पढ़िए। पिछले पेज पर हमने चलिए आज हम अतिश्योक्ति अलंकार की समस्त जानकारी पढ़ते और समझते हैं। अतिश्योक्ति अलंकार किसे कहते हैं अतिशयोक्ति का मतलब उक्ति में अतिशयता का समावेश होता है। यहाँ उपमेय और उपमान का समान कथन न होकर सिर्फ उपमान का वर्णन होता है। जहाँ किसी का वर्णन इतना बढ़ा-चढ़ाकर किया जाए कि लोक समाज की सीमा या मर्यादा का उल्लंघन हो जाय, वहाँ ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ होता है। उदाहरण :- 1. हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि। सगरी लंका जल गई , गये निसाचर भागि। उपर दिए वाक्य में बताया गया है कि हनुमान के पुंछ में तो आग नही लग पाया लेकिन पूरी लंका जल गई और सभी निशाचर अर्थात सभी दैत्य या असुर भाग गए। 2. बाँधा था विधु को किसने, इन काली जंजीरों से, मणिवाले फणियों का मुख, क्यों भरा हुआ हीरों से। यहाँ मोतियों से भरी हुई प्रिया की माँग का कवि ने वर्णन किया है। विधु या चन्द्र से मुख का, काली जंजीरों से केश का और मणिवाले फणियों से मोती भरी माँग का बोध होता है।

अलंकार की परिभाषा, भेद तथा उदाहरण class 9, 10,11,12

परिभाषा– काव्य में भाव तथा कला के सौन्दर्य को बढ़ाने वाले उपकरण अलंकार कहलाते है अथवा काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धर्मों को अलंकार कहते हैं। जिस प्रकार एक नृतकी की सुन्दरता उसके आभूषन से होती है उसी प्रकार किसी काव्य में अलंकार उसकी शोभा बढ़ाते हैं। अलंकार के भेद Types of alankar भेद– अलंकार तीन प्रकार के होते है- शब्दालंकार, अर्थालंकार तथा उभयालंकार। चूँकि उभयालंकार class 9, 10, 11, 12 के पाठ्यक्रम के शामिल नहीं है इसलिए यहाँ हम शब्दालंकार व अर्थालंकार के बारे में चर्चा करेंगे। शब्दालंकार– जिन अलंकारों के प्रयोग से शब्द में चमत्कार उत्पन्न होता है। इनमें अनुप्रास, यमक, और श्लेष प्रमुख हैं। अर्थालंकार– जिनसे अर्थ में चमत्कार पैदा होता है। इसमें उपमा, रूपक एवं उत्प्रेक्षा प्रमुख हैं। यमक अलंकार यमक सामान्य अर्थ है दो। अतः जब एक ही शब्द की भिन्न अर्थ में आवृत्ति होती वहाँ यमक अलंकार होता है। उदाहरण- (1)कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय। या पाए बौरात नर व खाये बौराय।। यहाँ कनक शब्द दो बार आया है। एक कनक का अर्थ है सोना और कनक का अर्थ धतुरा है। (2)मूरति मधुर मनोहर देखी। भयउ विदेह विसेखी।। यहाँ एक विदेह का अर्थ है राजा जनक और दुसरे विदेह का अर्थ है देह रहित अर्थातशरीर की सुधबुध खो देना। (3)बसन हमारौ, करहु बस; बस न लेहु प्रिय लाज, बसन देहु ब्रज में हमें , बसन देहु ब्रजराज। यहाँ बस और बस में अधिकार और समाप्ति का अर्थ है। बसन अर्थात वस्त्र और वसन- निवास करना। यमक का प्रयोग कभी कभी एक-से पदों को भंग करके उनके अर्थ करने में होता है। जैसे – वर जीते सर मैन के ऐसे देखे मै न। हरिनी के नैनान तें हरी नीके ये नैन।। श्लेष अलंकार काव्य में जहाँ एक शब्द के एक से अधिक अर्थ निकलते हैं वहाँ श्लेष अलंक...