Bhaktamar stotra lyrics hindi

  1. भक्तामर स्तोत्र हिन्दी में अर्थ सहित
  2. Best 3 Bhaktamar Stotra in Sanskrit [Lyrics & Hindi Meaning 2023]
  3. ॥ भक्तामर
  4. Stotra
  5. Jain world: Bhaktamar Stotra With Hindi Meanings:
  6. जैन भक्तामर स्तोत्र इन हिंदी लिरिक्स Jain Bhaktamar Stotra in Hindi Lyrics Font
  7. भक्तामर स्तोत्र (हिन्दी) Bhaktamar Stotra (Hindi) Archives


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भक्तामर स्तोत्र हिन्दी में अर्थ सहित

(भक्तामर स्तोत्र के प्रथम श्लोक का अर्थ ) झुके हुए भक्त देवो के मुकुट जड़ित मणियों की प्रथा को प्रकाशित करने वाले, पाप रुपी अंधकार के समुह को नष्ट करने वाले, कर्मयुग के प्रारम्भ में संसार समुन्द्र में डूबते हुए प्राणियों के लिये आलम्बन भूत जिनेन्द्रदेव के चरण युगल को मन वचन कार्य से प्रणाम करके (मैं मुनि मानतुंग उनकी स्तुति करुँगा)| (भक्तामर स्तोत्र के तृतीय श्लोक का अर्थ ) देवों के द्वारा पूजित हैं सिंहासन जिनका, ऐसे हे जिनेन्द्र मैं बुद्धि रहित होते हुए भी निर्लज्ज होकर स्तुति करने के लिये तत्पर हुआ हूँ क्योंकि जल में स्थित चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को बालक को छोड़कर दूसरा कौन मनुष्य सहसा पकड़ने की इच्छा करेगा? अर्थात् कोई नहीं | (भक्तामर स्तोत्र के चतुर्थ श्लोक का अर्थ ) हे गुणों के भंडार! आपके चन्द्रमा के समान सुन्दर गुणों को कहने लिये ब्रहस्पति के सद्रश भी कौन पुरुष समर्थ है? अर्थात् कोई नहीं अथवा प्रलयकाल की वायु के द्वारा प्रचण्ड है मगरमच्छों का समूह जिसमें ऐसे समुद्र को भुजाओं के द्वारा तैरने के लिए कौन समर्थ है अर्थात् कोई नहीं | (भक्तामर स्तोत्र के दसवें श्लोक का अर्थ ) हे जगत् के भूषण! हे प्राणियों के नाथ! सत्यगुणों के द्वारा आपकी स्तुति करने वाले पुरुष पृथ्वी पर यदि आपके समान हो जाते हैं तो इसमें अधिक आश्चर्य नहीं है| क्योंकि उस स्वामी से क्या प्रयोजन, जो इस लोक में अपने अधीन पुरुष को सम्पत्ति के द्वारा अपने समान नहीं कर लेता | (भक्तामर स्तोत्र के 25 वें श्लोक का अर्थ ) देव अथवा विद्वानों के द्वारा पूजित ज्ञान वाले होने से आप ही बुद्ध हैं| तीनों लोकों में शान्ति करने के कारण आप ही शंकर हैं| हे धीर! मोक्षमार्ग की विधि के करने वाले होने से आप ही ब्रह्मा हैं| और हे स...

Best 3 Bhaktamar Stotra in Sanskrit [Lyrics & Hindi Meaning 2023]

य: संस्तुत: सकल – वाङ् मय – तत्त्व-बोधा- दुद्भूत-बुद्धि – पटुभि: सुर – लोक – नाथै:। स्तोत्रैर्जगत्- त्रितय – चित्त – हरैरुदारै:, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्॥ 2॥ बुद्ध्या विनापि विबुधार्चित – पाद – पीठ! स्तोतुं समुद्यत – मतिर्विगत – त्रपोऽहम्। बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब- मन्य: क इच्छति जन: सहसा ग्रहीतुम् ॥ 3॥ वक्तुं गुणान्गुण -समुद्र! शशाङ्क-कान्तान्, कस्ते क्षम: सुर – गुरु-प्रतिमोऽपि बुद्ध ्या । कल्पान्त -काल – पवनोद्धत- नक्र- चक्रं, को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम्॥ 4॥ • सोऽहं तथापि तव भक्ति – वशान्मुनीश! कर्तुं स्तवं विगत – शक्ति – रपि प्रवृत्त:। प्रीत्यात्म – वीर्य – मविचार्य मृगी मृगेन्द्रम् नाभ्येति किं निज-शिशो: परिपालनार्थम्॥ 5॥ अल्प- श्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम, त्वद्-भक्तिरेव मुखरी-कुरुते बलान्माम् । यत्कोकिल: किल मधौ मधुरं विरौति, तच्चाम्र -चारु -कलिका-निकरैक -हेतु:॥ 6॥ त्वत्संस्तवेन भव – सन्तति-सन्निबद्धं, पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम् । आक्रान्त – लोक – मलि -नील-मशेष-माशु, सूर्यांशु- भिन्न-मिव शार्वर-मन्धकारम्॥ 7॥ मत्वेति नाथ! तव संस्तवनं मयेद, – मारभ्यते तनु- धियापि तव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सतां नलिनी-दलेषु, मुक्ता-फल – द्युति-मुपैति ननूद-बिन्दु:॥ 8॥ Bhaktamar Stotra Sanskrit Lyrics आस्तां तव स्तवन- मस्त-समस्त-दोषं, त्वत्सङ्कथाऽपि जगतां दुरितानि हन्ति । दूरे सहस्रकिरण: कुरुते प्रभैव, पद्माकरेषु जलजानि विकासभाञ्जि ॥ 9॥ नात्यद्-भुतं भुवन – भूषण! भूूत-नाथ! भूतैर्गुणैर्भुवि भवन्त – मभिष्टुवन्त:। तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ॥ 10॥ दृष्ट्वा भवन्त मनिमेष – विलोकनीयं, नान्यत्र – तोष- मुपयाति जनस्य चक्...

॥ भक्तामर

श्री भक्तामर का पाठ, करो नित प्रात, भक्ति मन लाई। सब संकट जाएँ नशाई॥ जो ज्ञान-मान-मतवारे थे, मुनि मानतुंग से हारे थे। उन चतुराई से नृपति लिया, बहकाई॥ सब संकट...॥1॥ मुनिजी को नृपति बुलाया था, सैनिक जा हुक्म सुनाया था। मुनि वीतराग को आज्ञा नहीं सुहाई॥ सब संकट...॥2॥ उपसर्ग घोर तब आया था, बलपूर्वक पकड़ मँगाया था। हथकड़ी बेड़ियों से तन दिया बंधाई॥ सब संकट...॥3॥ मुनि काराग्रह भिजवाए थे, अड़तालिस ताले लगाए थे। क्रोधित नृप बाहर पहरा दिया बिठा॥ सब संकट...॥4॥ मुनि शांतभाव अपनाया था, श्री आदिनाथ को ध्याया था। हो ध्यान-मग्न भक्तामर दिया बनाई॥सब संकट...॥5॥ सब बंधन टूट गए मुनि के, ताले सब स्वयं खुले उनके। काराग्रह से आ बाहर दिए दिखाई॥ सब संकट...॥7॥ जो पाठ भक्ति से करता है, नित ऋषभ-चरण चित धरता है। जो ऋद्धि-मंत्र का विधिवत जाप कराई॥ सब संकट...॥8॥ भय विघ्न उपद्रव टलते हैं विपदा के दिवस बदलते हैं। सब मन वांछित हों पूर्ण, शांति छा जाई॥ सब संकट...॥9॥ जो वीतराग आराधन है, आतम उन्नति का साधन है। उससे प्राणी का भव बंधन कट जाईं॥ सब संकट...॥10॥ ' कौशल' सुभक्ति को पहिचानो, संसार-दृष्टि बंधन जानो। लो भक्तामर से आत्म-ज्योति प्रकटाई॥ सब संकट...।11॥

Stotra

Bhaktamar Stotra Hindi Lyrics भक्त अमर नत-मुकुट सुमणियों, की सुप्रभा का जो भासक। पापरूप अतिसघन-तिमिर का, ज्ञान-दिवाकर-सा नाशक॥ भव-जल पतित जनों को जिसने, दिया आदि में अवलम्बन। उनके चरण-कमल को करते, सम्यक् बारम्बार नमन॥ १॥ सकल वाङ् मय तत्त्वबोध से, उद्भव पटुतर धी-धारी। उसी इन्द्र की स्तुति से है, वन्दित जग-जन मनहारी॥ अति आश्चर्य की … Categories Tags aditya hrudayam stotram lyrics in hindi आदित्य हृदय स्तोत्रम (Aditya Hriday Stotra) ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥॥ दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥॥ राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् । येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥॥ आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् … Categories Tags Shiv tandav lyrics in marathi जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌। डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥ जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी । विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि । धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥ धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर- स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे । कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥ जटा भुजं … Categories Tags Ganpati Stotra Marathi Lyrics श्री गणपती स्तोत्र मराठी Ganpati Stotra Marathi Lyrics |श्री गणपती स्तोत्र|| साष्टांग नमन हे माझे गौरीपुत्रा विनायका । भक्तीनें स्मरतो नित्य आयुःकामार्थ साधती ॥ १ ॥ प्रथम नांव वक्रतुंड दुसरें एकदंत ते ।...

Jain world: Bhaktamar Stotra With Hindi Meanings:

Bhaktamar Stotra 1-48 Stotras :- Sanskrit Sloka भक्तामर प्रणत मौलिमणि प्रभाणा। मुद्योतकं दलित पाप तमोवितानम्॥ सम्यक् प्रणम्य जिन पादयुगं युगादा। वालंबनं भवजले पततां जनानाम्॥१॥ Hindi Meaning झुके हुए भक्त देवो के मुकुट जड़ित मणियों की प्रथा को प्रकाशित करने वाले, पाप रुपी अंधकार के समुह को नष्ट करने वाले, कर्मयुग के प्रारम्भ में संसार समुन्द्र में डूबते हुए प्राणियों के लिये आलम्बन भूत जिनेन्द्रदेव के चरण युगल को मन वचन कार्य से प्रणाम करके (मैं मुनि मानतुंग उनकी स्तुति करुँगा)| Pronunciation bhaktamara-pranata-maulimani-prabhana – mudyotakam dalita-papa-tamovitanam | samyak pranamya jina padayugam yugada- valambanam bhavajale patatam jananam ॥ 1॥ Explanation(English) When the Gods bow down at the feet of Bhagavan Rishabhdeva divine glow of his nails increases shininess of jewels of their crowns. Mere touch of his feet absolves the beings from sins. He who submits himself at these feet is saved from taking birth again and again. I offer my reverential salutations at the feet of Bhagavan Rishabhadeva, the first Tirthankar, the propagator of religion at the beginning of this era. Sanskrit Sloka यः संस्तुतः सकल वाङ्मय तत्वबोधा। द् उद्भूत बुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः॥ स्तोत्रैर्जगत्त्रितय चित्त हरैरुदरैः। स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्॥२॥ Hindi Meaning सम्पूर्णश्रुतज्ञान से उत्पन्न हुई बुद्धि की कुशलता से इन्द्रों के द्वारा तीन लोक के मन को हरने वाले, गंभीर स्तोत्रों के द्वारा जिनकी स्तुति की गई है उन आदिनाथ जिनेन्द्र की निश्चय ही मैं (मानतुंग) भी स्तुति करुँगा| Pronunciat...

जैन भक्तामर स्तोत्र इन हिंदी लिरिक्स Jain Bhaktamar Stotra in Hindi Lyrics Font

• भक्तामर स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंगजी ने की थी। इस स्तोत्र का दूसरा नाम आदिनाथ स्तोत्र भी है। यह संस्कृत में लिखा गया है तथा प्रथम शब्द ‘भक्तामर’ होने के कारण ही इस स्तोत्र का नाम ‘भक्तामर स्तोत्र’ पड़ गया। ये वसंत-तिलका छंद में लिखा गया है। • इस स्तोत्र की रचना के संदर्भ में प्रमाणित है कि आचार्य मानतुंगजी को जब राजा भोज ने जेल में बंद करवा दिया था, तब उन्होंने भक्तामर स्तोत्र की रचना की तथा 48 श्लोकों पर 48 ताले टूट गए। मानतुंग आचार्य 7वीं शताब्दी में राजा भोज के काल में हुए हैं। इस स्तोत्र में भगवान आदिनाथ की स्तुति की गई है। • भक्तामर स्तोत्र जैसा कोई स्तोत्र नहीं। अपने आप में बहुत शक्तिशाली होने के कारण यह स्तोत्र बहुत ज्यादा प्रसिद्ध हुआ। • Bhaktamar Stotra Vidhi • भक्तामर स्तोत्र के पढ़ने का कोई एक निश्चित नियम नहीं है। भक्तामर स्तोत्र को किसी भी समय प्रात:, दोपहर, सायंकाल या रात में कभी भी पढ़ा जा सकता है। इसकी कोई समयसीमा निश्चित नहीं है, क्योंकि ये सिर्फ भक्ति प्रधान स्तोत्र हैं जिसमें भगवान की स्तुति है। धुन तथा समय का प्रभाव अलग-अलग होता है। • भक्तामर स्तोत्र का प्रसिद्ध तथा सर्वसिद्धिदायक महामंत्र है- ‘ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं अर्हं श्री वृषभनाथतीर्थंकराय् नम:।’ • Jain Bhaktamar Stotra in Hindi Lyrics • भक्तामर स्तोत्र (हिन्दी) • भक्त अमर नत मुकुट सु-मणियों, की सु-प्रभा का जो भासक। पाप रूप अति सघन तिमिर का, ज्ञान-दिवाकर-सा नाशक॥ भव-जल पतित जनों को जिसने, दिया आदि में अवलंबन। उनके चरण-कमल को करते, सम्यक बारम्बार नमन ॥१॥ सकल वाङ्मय तत्वबोध से, उद्भव पटुतर धी-धारी। उसी इंद्र की स्तुति से है, वंदित जग-जन मन-हारी॥ अति आश्चर्य की स्तुति करता, उसी प्रथम जिनस्वामी की।...

भक्तामर स्तोत्र (हिन्दी) Bhaktamar Stotra (Hindi) Archives

कविश्री पं. हेमराज Kaviśrī pt. Hēmarāja Audio PDF (दोहा) (dōhā) आदिपुरुष आदीश जिन, आदि सुविधि करतार | धरम-धुरंधर परमगुरु, नमूं आदि अवतार || Adipuruṣa ādīśa jina, ādi suvidhi karatāra | Dharama-dhurandhara paramaguru, namuṁ ādi avatāra || (चौपार्इ छन्द) (Caupāi chanda) सुर-नत-मुकुट रतन-छवि करें, अंतर पाप-तिमिर सब हरें । जिनपद वंदूं मन वच काय, भव-जल-पतित उधरन-सहाय ।।१।। Sura-nata-mukuṭa ratana-chavi kareṁ, antara pāpa-timira saba hareṁ | Jinapada vandun mana vaca kāya, bhava-jala-patita udharana-sahāya ||1|| श्रुत-पारग इंद्रादिक देव, जाकी थुति कीनी कर सेव | शब्द मनोहर अरथ विशाल, तिन प्रभु की वरनूं गुन-माल ||२|| Śruta-pāraga indrādika dēva, jākī thuti kīnī kara sēva | Śabda manōhara aratha viśāla, tina prabhu kī varanuṁ guna-māla ||2|| विबुध-वंद्य-पद मैं मति-हीन, हो निलज्ज थुति मनसा कीन | जल-प्रतिबिंब बुद्ध को गहे, शशिमंडल बालक ही चहे ||३|| Vibudha-vandya-pada maiṁ mati-hīna, hō nilajja thuti manasā kīna | Jala-pratibimba bud’dha kō gahe, śaśimaṇḍala bālaka hī cahe ||3|| गुन-समुद्र तुम गुन अविकार, कहत न सुर-गुरु पावें पार | प्रलय-पवन-उद्धत जल-जंतु, जलधि तिरे को भुज बलवंतु ||४|| Guna-samudra tuma guna avikāra, kahata na sura-guru pāveṁ pāra | Pralaya-pavana-ud’dhata jala-jantu, jaladhi tire kō bhuja balavantu ||4|| सो मैं शक्ति-हीन थुति करूँ, भक्ति-भाव-वश कछु नहिं डरूँ | ज्यों मृगि निज-सुत पालन हेत, मृगपति सन्मुख जाय अचेत ||५|| Sō maiṁ śakti-hīna thuti karūm̐, bhakti-bhāva-vaśa kachu nahiṁ ḍarūm̐ | Jyōṁ mr̥gi nija-suta pālana hēt, mr̥gapati sanmukha jāya acēta ||5|| मैं शठ सुध...