Jaishankar prasad dwara likhit natak nahin hai

  1. Dhruvswamini Jaishankar Prasad
  2. जयशंकर प्रसाद
  3. प्रमुख नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र जयशंकर प्रसाद मोहन राकेश पूरी जानकारी
  4. Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay : जानिए महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचनाएं, साहित्यिक परिचय, साहित्यिक विशेषताएं
  5. Jaishankar Prasad Natak Sangrah : Jaishankar Prasad : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive
  6. जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय एवं प्रमुख रचनाएं
  7. CHOTA JADUGAR
  8. जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय एवं प्रमुख रचनाएं
  9. जयशंकर प्रसाद
  10. प्रमुख नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र जयशंकर प्रसाद मोहन राकेश पूरी जानकारी


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Dhruvswamini Jaishankar Prasad

आज हम आप लोगों को ध्रुवस्वामिनी (Dhruvswamini) नाटक जो कि के कथा-सार के बारे में बताने जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त यदि आपको और भी हिन्दी से सम्बन्धित पोस्ट चाहिए तो आप हमारे website के top Menu में जाकर प्राप्त कर सकते है। पूर्वाभास- ‘ ध्रुवस्वामिनी ‘ ( Dhruvswamini ) प्रसादजी की एक महत्वपूर्ण अंतिम नाट्यकृति है। इसका प्रकाशन सन् 1933 ई. में हुआ था। इस नाटक में समुद्रगुप्त की मृत्यु एवं चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण के समय के मध्यवर्ती काल का चित्रण किया गया है। यद्यपि इस काल का घटना-व्यापार इतिहास में प्रायः लुप्त सा है, किंतु प्रसादजी ने निजी अध्ययन एवं तर्कयुक्त कल्पनाओं के आधार पर इस काल की कथावस्तु का संयोजन अपने इस अंतिम नाटक में किया है। इस नाटक की कथावस्तु अधिक यथार्थ प्रभावशाली एवं स्वाभाविक है। इसमें यदि एक ओर शास्त्रीय रूढ़ियों के दर्शन होते हैं तो दूसरी ओर अन्य कथात्मक विशेषताएँ भी परिलक्षित होती हैं। ध्रुवस्वामिनी ( Dhruvswamini ) का कथानक इस प्रकार है Dhruvswamini – कथा – सार गुप्त-काल के समुद्रगुप्त ने अपने दो पुत्रों रामगुप्त और चन्द्रगुप्त में से चंद्रगुप्त को ही साम्राज्य के भावी उत्तराधिकारी के रूप में चुना था। किंतु समुद्रगुप्त की मृत्यु के उपरांत चन्द्रगुप्त अपने भाई द्वारा फैलाये अनेक कुचक्रों में फँस गया। परिस्थितियों की प्रतिकूलता एवं अपनी उदारता के कारण चन्द्रगुप्त ने अपने समस्त अधिकार ज्येष्ठ भ्राता रामगुप्त को सौंप दिये। राज्याधिकार के इस षड्यंत्रकारी परिवर्तन के पीछे शिखरस्वामी का बहुत बड़ा हाथ था। विलासी रामगुप्त धन और शक्ति के लोभ के कारण राज दण्ड को प्राप्त कर लेता है, किंतु वह राज्य प्रशासन में सर्वथा असमर्थ है। वह स्वयं विलासिनी स्त्रियों के साहच...

जयशंकर प्रसाद

मृत्यु स्थान वाराणसी उत्तर प्रदेश अभिभावक देवी प्रसाद साहू कर्मभूमि वाराणसी कर्म-क्षेत्र उपन्यासकार ,नाटककार ,कवि , मुख्य रचनाएं चित्रधारा ,कामायनी ,आंसू ,लहर ,झरना ,एक घूंट ,विशाख ,अजातशत्रु ,आकाशदीप ,आंधी ,ध्रुव स्वामिनी ,तितली ,और कंकाल। विषय कविता ,उपन्यास ,नाटक ,और निबंध। भाषा हिंदी ,ब्रजभाषा ,खड़ी बोली। नागरिकता भारतीय शैली वर्णात्मक ,भावात्मक ,अलंकारिक ,सुक्ति परक ,प्रतिकात्मक। जन्म जिस समय खड़ी बोली और आधुनिक हिंदी साहित्य किशोरावस्था में पदार्पण कर रहे थे। उस समय जयशंकर प्रसाद का जन्म सन 1889 ई.( माघ शुक्ल दशमी संवत 1946 वि.) वाराणसी उत्तर प्रदेश में हुआ था। कवि के पितामह शिवरत्न साहू वाराणसी के अत्यंत प्रतिष्ठित नागरिक थे। और एक विशेष प्रकार की सुरती (तंबाकू) बनाने के कारण सुंघनी साहू के नाम से विख्यात हुए। उनकी दानशीलता सर्वविदित थी और उनके यहां विद्वानों कलाकारों का सादर सम्मान होता था। जयशंकर प्रसाद के पिता देवी प्रसाद साहु ने भी अपने पूर्वजों की परंपरा का पालन किया। इस परिवार की गड़णा वाराणसी के अतिशय समृद्धि घरानों में थी। और धन वैभव का कोई अभाव ना था। प्रसाद का कुटुंब शिव का उपासक था माता-पिता ने उनके जन्म के लिए अपने इष्टदेव से बड़ी प्रार्थना की थी वैद्यनाथ धाम के झारखंड से लेकर उज्जैन के महाकाल की आराधना के फलस्वरूप पुत्र जन्म स्वीकार कर लेने के कारण शैशव में जयशंकर प्रसाद को झारखंडी कहकर पुकारा जाता था वजन वैद्यनाथधाम में ही जयशंकर प्रसाद का नामकरण संस्कार हुआ शिक्षा जयशंकर प्रसाद की शिक्षा घर पर ही आरंभ हुई संस्कृत हिंदी फारसी उर्दू के लिए शिक्षक नियुक्त है इनमें रस्में सिद्ध प्रमुख थे प्राचीन संस्कृत ग्रंथों के लिए दिनबंधु ब्रह्मचारी शिक्षक थे कुछ समय क...

प्रमुख नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र जयशंकर प्रसाद मोहन राकेश पूरी जानकारी

Table of Contents • • • • • • 1 नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र भारतेंदु ने पारसी नाटकों के विपरीत जनसामान्य को जागृत करने एवं उनमें आत्मविश्वास जगाने के उद्देश्य से नाटक लिखे हैं। इसलिए उनके नाटकों में देशप्रेम, न्याय, त्याग, उदारता जैसे मानवीय मूल्यों नाटकों की मूल संवेदना बनकर आए हैं प्राचीन संस्कृति के प्रति प्रेम एवं ऐतिहासिक पात्रों से प्रेरणा लेने का प्रयास भी इन नाटकों में हुआ है। भारतेंदु के लेखन की एक मुख्य विशेषता यह है कि वह अक्सर व्यंग्य का प्रयोग यथार्थ को तीखा बनाने में करते हैं। हालांकि उसका एक कारण यह भी है कि तत्कालीन पराधीनता के परिवेश में अपनी बात को सीधे तौर पर कह पाना संभव नहीं था। इसलिए जहां भी राजनीतिक, सामाजिक चेतना, के बिंदु आए हैं वहां भाषा व्यंग्यात्मक हो चली है।इसलिए भारतेंदु ने कई प्रहसन भी लिखे हैं। यह भी पढ़ें- भारतेंदु ने मौलिक व अनुदित दोनों मिलाकर 17 नाटकों का सृजन किया भारतेंदु के प्रमुख नाटक का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है- वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति मांस भक्षण पर व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया नाटक है । प्रेमयोगिनी में काशी के धर्मआडंबर का वही की बोली और परिवेश में व्यंग्यात्मक चित्रण किया गया है। विषस्य विषमौषधम् में अंग्रेजों की शोषण नीति और भारतीयों की महाशक्ति मानसिकता पर चुटीला व्यंग है। चंद्रावली वैष्णव भक्ति पर लिखा गया नाटक है। अंधेर नगरी में राज व्यवस्था की स्वार्थपरखता, भ्रष्टाचार, विवेकहीनता एवं मनुष्य की लोभवृति पर तीखा कटाक्ष है जो आज भी प्रासंगिक है। नीलदेवी में नारी व्यक्तित्व की प्रतिष्ठा है। यह दुखांत नाटक की परंपरा के नजदीक है। भारत दुर्दशा में पराधीन भारत की दयनीय आर्थिक स्थिति एवं सामाजिक-सांस्कृतिक अधः पतन का चित्रण है ।...

Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay : जानिए महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचनाएं, साहित्यिक परिचय, साहित्यिक विशेषताएं

महाकवि कथाकार नाटककार जयशंकर प्रसाद को कौन नहीं जानता। कक्षा पांचवी से लेकर 12वीं तक ग्रेजुएशन से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक हिंदी साहित्य में जयशंकर प्रसाद की रचनाएं देखने को मिलती हैं। जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय और रचनाएं ना केवल पढ़ने में सरल और सुलभ होती हैं बल्कि हमें यथार्थ ज्ञान और प्रेरणा भी देती है। छायावाद के कवि जयशंकर प्रसाद रचना को अपनी साधना समझते थे। वह उपन्यास को ऐसे लिखते थे मानो जैसे वह उसे पूजते हो। जयशंकर प्रसाद जी के बारे में अभी बातें खत्म नहीं हुई है उनकी कई सारी कविताएं कहानियां है जो आपको यथार्थ का भाव कराएंगी। आइए विस्तार से जानते हैं Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay के बारे में। नाम जयशंकर प्रसाद जन्म सन 1890 ईस्वी में जन्म स्थान उत्तर प्रदेश राज्य के काशी में पिता का नाम श्री देवी प्रसाद शैक्षणिक योग्यता अंग्रेजी, फारसी, उर्दू, हिंदी व संस्कृत का स्वाध्याय रुचि साहित्य के प्रति, काव्य रचना, नाटक लेखन लेखन विधा काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध मृत्यु 15 नवंबर, 1937 ईस्वी में साहित्य में पहचान छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक भाषा भावपूर्ण एवं विचारात्मक शैली विचारात्मक, अनुसंधानात्मक, इतिवृत्तात्मक, भावात्मक एवं चित्रात्मक। साहित्य में स्थान जयशंकर प्रसाद जी को हिंदी साहित्य में नाटक को नई दिशा देने के कारण ‘प्रसाद युग’ का निर्माणकर्ता तथा छायावाद का प्रवर्तक कहा गया है। This Blog Includes: • • • • • • • • • • • • • • • • Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay महान लेखक और कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म – सन् 1889 ई. में हुआ तथा मृत्यु – सन् 1937 ई में हुई।बहुमुखी प्रतिभा के धनी जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था| बचपन में ...

Jaishankar Prasad Natak Sangrah : Jaishankar Prasad : Free Download, Borrow, and Streaming : Internet Archive

Addeddate 2020-12-06 11:20:02 Identifier jaishankar-prasad-natak-sangrah Identifier-ark ark:/13960/t55f8m15j Ocr tesseract 4.1.1 Ocr_detected_lang hi Ocr_detected_lang_conf 1.0000 Ocr_detected_script Devanagari Ocr_detected_script_conf 1.0000 Ocr_module_version 0.0.8 Ocr_parameters -l hin Ppi 300 Scanner Internet Archive HTML5 Uploader 1.6.4

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय एवं प्रमुख रचनाएं

जयशंकर प्रसाद (सन् 1890-1937 ई.) का जन्म माघ शुक्ल दशमी, संवत् 1946 वि. को वाराणसी के प्रसिद्ध तंबाकू के भारी व्यापारी सुंघनी साहू के पुत्र रूप में हुआ। जयशंकर प्रसाद के पिता शिवरतन साहू काशी के अति प्रतिष्ठित नागरिक थे। अवधि में सुंघनी सूंघने वाली तंबाकू को कहते हैं। यह परिवार अति उत्तम कोटि की तम्बाकू का निर्माण करता था इसीलिए नाम ही सुंघनी साहू पड़ गया। भरा-पूरा परिवार था। कोई भी धार्मिक अथवा विद्वान काशी में आता तो साहू जी उसकी अत्यधिक सेवा करते थे। दानी परिवार था। कवियों, गायकों तथा कलाकारों की गोष्ठियां उनके घर पर चलती रहती थीं। महादेव नाम से प्रसिद्ध थे। शैशवावस्था में ही खेलने की अनेक वस्तुओं में से लेखनी का चयन किया था। नौ वर्ष की अवस्था में कलाधर उपनाम से कविता रचकर अपने गुरू रसमय सिद्ध को दिखलाई। इनका परिवार शैव था। घर पर ही संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी तथा फारसी आदि भाषाओं के पढ़ने की व्यवस्था थी। बारह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। अग्रज शंभुरतन का ध्यान व्यवसाय की ओर अधिक न था। देवी प्रसाद की मृत्यु के बाद गृहकलह ने जन्म लिया। मकान बिक गया। कॉलेज की पढ़ाई छूट गई। आठवीं कक्षा तक ही पढ़ सके। उपनिषद्, पुराण, वेद एवं भारतीय दर्शन का अध्ययन घर पर चलता रहा। जयशंकर प्रसाद जी कसरत किया करते थे। दुकान बही पर बैठे-बैठे कविता लिखा करते थे। जयशंकरप्रसाद जी ने तीन विवाह किए थे। प्रथम पत्नी का क्षय रोग से तथा द्वितीय का प्रसूति के समय देहावसान हो गया था। तीसरी पत्नी से इन्हें रत्न शंकर नामक पुत्रा की प्राप्ति हुई। जीवन के अन्तिम दिनों में जयशंकर प्रसाद जी उदर रोग से ग्रस्त हो गए थे तथा इसी रोग ने कार्तिक शुक्ला देवोत्थान एकादशी, विक्रम संवत् 1994 को इस बहुमु...

CHOTA JADUGAR

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जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय एवं प्रमुख रचनाएं

जयशंकर प्रसाद (सन् 1890-1937 ई.) का जन्म माघ शुक्ल दशमी, संवत् 1946 वि. को वाराणसी के प्रसिद्ध तंबाकू के भारी व्यापारी सुंघनी साहू के पुत्र रूप में हुआ। जयशंकर प्रसाद के पिता शिवरतन साहू काशी के अति प्रतिष्ठित नागरिक थे। अवधि में सुंघनी सूंघने वाली तंबाकू को कहते हैं। यह परिवार अति उत्तम कोटि की तम्बाकू का निर्माण करता था इसीलिए नाम ही सुंघनी साहू पड़ गया। भरा-पूरा परिवार था। कोई भी धार्मिक अथवा विद्वान काशी में आता तो साहू जी उसकी अत्यधिक सेवा करते थे। दानी परिवार था। कवियों, गायकों तथा कलाकारों की गोष्ठियां उनके घर पर चलती रहती थीं। महादेव नाम से प्रसिद्ध थे। शैशवावस्था में ही खेलने की अनेक वस्तुओं में से लेखनी का चयन किया था। नौ वर्ष की अवस्था में कलाधर उपनाम से कविता रचकर अपने गुरू रसमय सिद्ध को दिखलाई। इनका परिवार शैव था। घर पर ही संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी तथा फारसी आदि भाषाओं के पढ़ने की व्यवस्था थी। बारह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। अग्रज शंभुरतन का ध्यान व्यवसाय की ओर अधिक न था। देवी प्रसाद की मृत्यु के बाद गृहकलह ने जन्म लिया। मकान बिक गया। कॉलेज की पढ़ाई छूट गई। आठवीं कक्षा तक ही पढ़ सके। उपनिषद्, पुराण, वेद एवं भारतीय दर्शन का अध्ययन घर पर चलता रहा। जयशंकर प्रसाद जी कसरत किया करते थे। दुकान बही पर बैठे-बैठे कविता लिखा करते थे। जयशंकरप्रसाद जी ने तीन विवाह किए थे। प्रथम पत्नी का क्षय रोग से तथा द्वितीय का प्रसूति के समय देहावसान हो गया था। तीसरी पत्नी से इन्हें रत्न शंकर नामक पुत्रा की प्राप्ति हुई। जीवन के अन्तिम दिनों में जयशंकर प्रसाद जी उदर रोग से ग्रस्त हो गए थे तथा इसी रोग ने कार्तिक शुक्ला देवोत्थान एकादशी, विक्रम संवत् 1994 को इस बहुमु...

जयशंकर प्रसाद

ध्रुवस्वामिनी के माध्यम से जयशंकर प्रसाद ने इस तरीके संदर्भों को उठाया है। उनकी शिक्षा को उस पर हो रहे अत्याचार आदि को उजागर करते हुए उससे मुक्ति का मार्ग भी दिखाने का प्रयास किया है। तत्कालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति कुछ ठीक नहीं थी। उन्हें भोग विलास की वस्तु समझा जाता था जिसका विरोध ध्रुवस्वामिनी ने इस नाटक में किया। इस लेख में आप ध्रुवस्वामिनी के माध्यम से तत्कालीन समाज और स्त्रियों की समस्या पर समग्र रूप से अध्ययन करेंगे तथा जयशंकर प्रसाद के दृष्टिकोण से भी परिचित होंगे। जयशंकर प्रसाद का काल 1916 से 1950 स्वीकार किया जाता है ।जयशंकर , भारतेंदु के उत्तराधिकारी के रुप में प्रस्तुत हुए क्योंकि महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने नाटक के क्षेत्र में विशेष योगदान नहीं दिया आता उनके काल को हिंदी नाटक में अंधकार युग कहा गया। प्रसाद जी ने नाटक की रचना में विभिन्न नए प्रयोग किए जैसे अंको के विभाजन क्षेत्र में पर्दे पर रंगमंचीयता के संदर्भ में आदि। उन्होंने अनेक प्रकार की रचनाएं कि जैसे पौराणिक ,ऐतिहासिक ,मिथक ,लोक-श्रुति के आधार पर। किंतु अनेक नाटक में ऐतिहासिक पात्रों की बहुलता रही उन्होंने अतीत के गौरव का बखान किया। भारत वासियों की पराजित मनोवृति को अतीत के गौरव से सहलाया ध्रुवस्वामिनी ,मंदाकिनी ,जैसी पात्रों ने स्त्री चेतना स्त्री आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया। ध्रुवस्वामिनी का प्रकाशन 1933 में हुआ नाटक में नारी के अस्तित्व, अधिकार, और पुनर्लगन, की समस्या को उठाया है इस नाटक में पुरुष सत्तात्मक समाज के शोषण के प्रति नारी का विद्रोह है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को आधार बनाकर रचे गए इस नाटक के माध्यम से नाटककार ने नारी जीवन की जटिल समस्याओं के संबंध में अपने दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया ...

प्रमुख नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र जयशंकर प्रसाद मोहन राकेश पूरी जानकारी

Table of Contents • • • • • • 1 नाटककारभारतेंदुहरिश्चंद्र भारतेंदुनेपारसीनाटकोंकेविपरीतजनसामान्यकोजागृतकरनेएवंउनमेंआत्मविश्वासजगानेकेउद्देश्यसेनाटकलिखेहैं।इसलिएउनकेनाटकोंमेंदेशप्रेम, न्याय, त्याग, उदारताजैसेमानवीयमूल्योंनाटकोंकीमूलसंवेदनाबनकरआएहैंप्राचीनसंस्कृतिकेप्रतिप्रेमएवंऐतिहासिकपात्रोंसेप्रेरणालेनेकाप्रयासभीइननाटकोंमेंहुआहै। प्रेमयोगिनीमेंकाशीकेधर्मआडंबरकावहीकीबोलीऔरपरिवेशमेंव्यंग्यात्मकचित्रणकियागयाहै। विषस्यविषमौषधम्मेंअंग्रेजोंकीशोषणनीतिऔरभारतीयोंकीमहाशक्तिमानसिकतापरचुटीलाव्यंगहै। चंद्रावलीवैष्णवभक्तिपरलिखागयानाटकहै। अंधेरनगरीमेंराजव्यवस्थाकीस्वार्थपरखता, भ्रष्टाचार, विवेकहीनताएवंमनुष्यकीलोभवृतिपरतीखाकटाक्षहैजोआजभीप्रासंगिकहै। नीलदेवीमेंनारीव्यक्तित्वकीप्रतिष्ठाहै।यहदुखांतनाटककीपरंपराकेनजदीकहै। भारतेंदुनेअंग्रेजीके मर्चेंटऑफवेनिसनाटकका दुर्लभबंधुनामसेअधूराअनुवादभीकियाहै। भारतेंदुकेनाटकसोद्देश्यलिखेगएहैं।उनकीभाषाआमआदमीकीभाषाहै।लोकजीवनकेप्रचलितशब्दमुहावरेएवंअंग्रेजी, उर्दू, अरबी, फारसीकेसहजचलनमेंआनेवालेशब्दउनकेनाटकोंमेंप्रयुक्तहुएहैं।रंगमंचीयदृष्टिसेवहप्रायःभारतीयपरंपराकीनीतियोंकाअनुसरणकरतेहैंजैसे- नांदीपाठ, मंगलाचरणआदि। वैसेउन्होंने नीलदेवीनामकदुखांतनाटकलिखकरपाश्चात्यनाट्यपरंपरासेभीप्रभावग्रहणकियाहै। भारतदुर्दशामेंभीदुखांतकाप्रभावविद्यमानहै।भारतेंदुकोहिंदीकेप्रथमनाटककारएवंयुगप्रवर्तककेरूपमेंस्वीकारकियागयाहै। 6संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजीनाटककलाकासमन्वयकरहिंदीकीस्वतंत्रनाट्यकलाकीनींवडाली। 2 नाटककारजयशंकरप्रसाद भारतेंदुकेबादजयशंकरप्रसादनेहीहिंदीनाटककोएकनयाआयामदिया।उन्होंनेऐतिहासिक, सांस्कृतिकपरंपराओंकोआत्मसातकरपाश्चात्यएवंभारतीयनाट्यसाहित्यकासमन्वयकिया।यहश्रेयप्रसादकोह...