पृथ्वीराज चौहान

  1. पृथ्वीराज चौहान कौन थे
  2. Prithviraj Chauhan: जानें पृथ्वीराज चौहान के वंशज, उनकी वीरता और मोहम्मद ग़ोरी के साथ हुए युद्ध के बारे में
  3. पृथ्वीराज चौहान की जीवनी
  4. पृथ्वीराज चौहान
  5. पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) का सम्पूर्ण जीवन परिचय
  6. पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी, क्या है तराइन युद्ध की स्टोरी
  7. पृथ्वीराज चौहान
  8. पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी, क्या है तराइन युद्ध की स्टोरी
  9. पृथ्वीराज चौहान की जीवनी
  10. Prithviraj Chauhan: जानें पृथ्वीराज चौहान के वंशज, उनकी वीरता और मोहम्मद ग़ोरी के साथ हुए युद्ध के बारे में


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पृथ्वीराज चौहान कौन थे

उस समय हिंदुस्तान छोटे देशों में फैल था! उस समय उत्तर भारत में एक शक्तिशाली राजवंश उभर कर आया जिसकी राज्य की सीमा दिल्ली से लेकर अजमेर तक फ़ैली हुई थी!,चौहान के पिता (सोमेश्वर) अज़मेर के शासक थे , उनके नाना जी ने पृथ्वीराज चौहान – संयोगिता का स्वयवर पुरे भारत मेंवीर प्रतापी सम्राट होने का समाचार फ़ैल गया !कन्नौज के राजा जय चंद (गद्दारी के लिए इतिहास के पन्नों में मशहूर जयचंद ) की एक पुत्री थी नाम था संयुक्ता ! वह बहुत सुन्दर चतुर और होशियार राजकुमारी थी ! उसने पृथ्वीराज चौहान की महानता, वीरता और रण कौशल के बारे में सुना था और वह उन्हें ही अपना पति मान चुकी थी ! राजकुमारी अपने लिए उपयुक्त वर चुन सके, जयचंद ने स्वयंबर का ऐलान किया ! तमाम राज्यों के राजकुमारों को स्वयंबर में सामिल होने का निमंत्रण दिया गया लेकिन वैर वस प्रतापी सम्राट पृथ्वीराज चौहान को जान बुझ कर निमंत्र्ण नहीं भेजा ! संयुक्ता को जब मालूम हुआ की उसके पिता ने पृथ्वी राज चौहान को निमंत्र्ण नहीं भेजा है तो उसने एक निजी पत्र लिख कर अपने ख़ास विश्वास पात्र सेवक के हाथों पत्र सम्राट को पहुंचा दिया इस अनुरोध के साथ की ‘ वे आएं और अपनी संयुकता को यहाँ से ले जाये ! निश्चित दिन, सही समय पर पृथ्वीराज चौहान स्वयंबर स्थल पर पहुंचे और राजकुमारी संयुक्ता को सबके सामने अपने अश्व पर बिठाकर ले कर चले गये ! वहा खड़े सिपाही और सारे राजकुमार बस देखते रह गए ! वहां उन्होंने विधि विधान से राजकुमारी संयुक्ता के साथ शादी की और संयुक्ता को महारानी का उच्च दर्जा देकर सम्मानित किया ! इधर जयचंद इस घटना से अपने को अपमानित महसूस करने लगा और गुस्से में आकर पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने के लिए उसने सीधे गौरी से संपर्क कर दिया, और उसे दिल्ली पर...

Prithviraj Chauhan: जानें पृथ्वीराज चौहान के वंशज, उनकी वीरता और मोहम्मद ग़ोरी के साथ हुए युद्ध के बारे में

Prithviraj Chauhan: पृथ्वीराज चौहान को भारत के सबसे प्रसिद्ध और चौहान (चहमना) शासकों के राजपूत योद्धा राजा के रूप में जाना जाता है. उन्होंने राजस्थान में सबसे मजबूत राज्य की स्थापना की थी. हाल ही में बॉलीवुड फिल्म 'पृथ्वीराज चौहान' का टीज़र ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर रिलीज किया गया है. फिल्म पृथ्वीराज चौहान के सम्मान में बनाई गई है, जिसमें अक्षय कुमार, संजय दत्त, सोनू सूद और पूर्व मिस वर्ल्ड मानुषी छिल्लर ने अभिनय किया है. ट्रेलर हाल ही में Youtube पर रिलीज़ किया गया है. Watch the glorious history of Samrat पृथ्वीराज चौहान और उनके वंशज के बारे में दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाले चौहान वंश के अंतिम शासक पृथ्वीराज चौहान (पृथ्वीराज तृतीय) का जन्म 1166 AD में अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान के पुत्र के रूप में हुआ था. वे एक मेधावी बच्चा थे और सैन्य कौशल सीखने में बहुत तेज़ थे. साथ ही वे शासकों के चहमान (चौहान) वंश के एक राजपूत योद्धा राजा थे, जिनका राजस्थान में सबसे मजबूत राज्य था. वे आवाज़ के दम पर ही लक्ष्य को भेदने का हुनर रखते थे. पृथ्वीराज चौहान 1179 में तेरह वर्ष की आयु में अजमेर की गद्दी पर बैठे, जब उनके पिता की एक युद्ध में मृत्यु हो गई थी. पृथ्वीराज चौहान को योद्धा राजा के रूप में क्यों जाना जाता था? दिल्ली के शासक उनके दादा अंगम ने उनके साहस और बहादुरी के बारे में सुनकर उन्हें दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था. एक बार पृथ्वीराज चौहान ने बिना किसी शस्त्र के अकेले ही एक शेर को मार डाला था. इसलिए उन्हें योद्धा राजा के रूप में जाना जाता था. जब वे दिल्ली की गद्दी पर बैठे तो उन्होंने यहां किला राय पिथौरा का निर्माण कराया. उनका पूरा जीवन वीरता, साहस, वीरतापूर्ण कर्मों औ...

पृथ्वीराज चौहान की जीवनी

दिल्ली के राज-सिंहासन पर बैठने वाले चौहान राजवंश के अंतिम शासक पृथ्वीराज चौहान का जन्म वर्ष 1168 में, अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान के यहाँ एक पुत्र के रूप में हुआ था। पृथ्वीराज चौहान एक प्रतिभाशाली बालक थे, जो सैन्य कौशल सीखने में बहुत ही निपुण थे। पृथ्वीराज चौहान में आवाज के आधार पर निशाना लगाने की कुशलता थी। जब वर्ष 1179 में पृथ्वीराज के पिता की एक युद्ध में मृत्यु हो गई थी, तब पृथ्वीराज ने 13 वर्ष की उम्र में अजमेर के राजगढ़ की गद्दी को संभाला था। पृथ्वीराज के दादा अंगम दिल्ली के शासक थे। उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साहस और बहादुरी के बारे में सुनने के बाद, उन्हें दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। पृथ्वीराज ने एक बार बिना किसी हथियार के अकेले ही एक शेर को मार डाला था। पृथ्वीराज चौहान को एक योद्धा राजा के रूप में जाना जाता था। जब पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के राज-सिंहासन की गद्दी पर बैठे, तब उन्होंने किला राय पिथौरा का निर्माण कराया। पृथ्वीराज का संपूर्ण जीवन वीरता, साहस, शौर्यवान और निरंतर महत्वपूर्ण कार्य करने की एक श्रृंखला में बँधा था। जब पृथ्वीराज चौहान केवल तेरह वर्ष के थे, तब उन्होंने गुजरात के पराक्रमी शासक भीमदेव को पराजित किया था। पृथ्वीराज चौहान के शत्रु जयचंद की बेटी संयुक्ता के साथ उनकी प्रेम कहानी बहुत ही प्रसिद्ध है। पृथ्वीराज चौहान उसके ‘स्वयंवर’ के दिन ही उसको साथ में लेकर चले गए थे। पृथ्वीराज चौहान जिस समय अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे, उस समय वर्ष 1191 में मोहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण कर दिया था और तराइन के पहले युद्ध में गोरी पराजित हो गया था। मोहम्मद गोरी की पराजित होने वाली सेना पर हमला करने के लिए कहा गया, लेकिन पृथ्वीराज चौहा...

पृथ्वीराज चौहान

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पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) का सम्पूर्ण जीवन परिचय

पृथ्वीराज चौहान, चौहान राजवंश का प्रसिद्ध राजा थे। वह चौहान वंश मे जन्मे पृथ्वीराज आखिरी हिन्दू शासक थे| सम्राट पृथ्वीराज चौहान का जन्म साल 1166 में अजमेर के राजा सोमेश्वप चौहान के घर हुआ था। कर्पूरी देवी पृथ्वीराज चौहान की मां दिल्ली के राजा अनंगपाल द्वितीय की इकलौती बेटी थीं। पृथ्वीराज का जन्म उनके माता पिता के विवाह के 12 वर्षो के पश्चात हुआ. यह राज्य मे खलबली का कारण बन गया और राज्य मे उनकी मृत्यु को लेकर जन्म समय से ही षड्यंत्र रचे जाने लगे | विषय विवरण पूरा नाम पृथ्वीराज चौहान जन्म 1166 ईस्वी मृत्यु 1192 ईस्वी पिता सोमेश्वर चौहान माता कर्पूरदेवी वंश चौहान वंश राज्य दिल्ली और अजमेर प्रमुख युद्ध पहला तराइन का युद्ध (1191 ईस्वी), दूसरा तराइन का युद्ध (1192 ईस्वी) पत्नी संयोगिता प्रमुख कार्य उन्होंने अपने राज्य में न्याय, समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया। संयोगिता के स्वयंवर में उन्होंने बड़ी वीरता दिखाई। यादगार बातें उनकी वीरता, साहस और नेतृत्व की कहानियाँ आज भी हमें प्रेरणा देती हैं। पृथ्वीराज रासो, एक हिन्दी एपिक कविता, उनकी जीवनी को चरितार्थ करती है। पृथ्वीराज चौहान की शिक्षा उनका बचपन अजमेर, राजस्थान में बिता। उन्होंने अपनी शिक्षा ब्राह्मणों से प्राप्त की थी और उन्हें धनुर्विद्या में विशेष शिक्षा मिली थी| बचपन मेंही कुशल योद्धा रहे सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने युद्ध के कई गुण सीख थे। बाल्य काल में ही उनके अंदर योद्धा बनने के सभी गुण आ गए थे।उत्तर भारत में 12 वीं सदी के उत्तरार्ध में उन्होंने अजमेर और दिल्ली पर राज किया। पृथ्वीराज चौहान छह भाषाएं जानते थे जिनमें संस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी और अपभ्रंश भाषा शामिल है। इसके साथ ही उनको मीमांसा, वेदान्त, ...

पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी, क्या है तराइन युद्ध की स्टोरी

तराइन का प्रथम युद्ध : हमारे इतिहास में यह पढ़ाया जाता है कि मोहम्मद गौरी ने चौहानवंश के सम्राट पृथ्वीराज चौहान को तराइनके दूसरे युद्ध में हरा दिया था, लेकिन यह नहीं पढ़ाया जाता है कि पहली लड़ाई में क्या हुआ। पहली लड़ाई वर्ष 1191 में हुई थी जिसमें पृथ्वीराज चौहान ने न केवल मोहम्मद गौरी को हराया था बल्कि उसकी पूरी सेना को बंधक बना लिया था और कई दिनों तक उस लुटेरे को सम्राट ने अपनी जेल में रखा। बाद में उसे और उसकी सेना पर दया करके उसे छोड़ दिया गया और उसे उसके देश लौटने का मौका दिया। हालांकि कुछ इतिहासकार यह कहते हैं कि तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद गोरी की बुरी तरह हार हुई और उसकी सेना भाग खड़ी हुई। वह भी बुरी तरह से घायल होकर भाग गया था। कहते हैं कि लुटेरे गौरी की जान एक युवा खिलजी घुड़सवार ने बचाई थी। यह भी कहा जाता है कि यह लड़ाई भटिंडा सहित पंजाब पर गौरी के अधिकार को लेकर हुई थी। पृथ्‍वीराज पंजाब की धरती से इस लुटेरे के अधिकार को समाप्त करके राजपूतों का अधिकार स्थापित करना चाहते थे। मोहम्मद गौरी तराइन की पहली लड़ाई में बुरी तरह हारने और बंधक बना लेने और फिर छोड़े जाने के एक वर्ष बाद यानी 1192 में वह दोगुनी सेना लेकर पृथ्‍वीराज चौहान से लड़ने आया। हालांकि तब भी पृथ्‍वीराज चौहान को वह हरा नहीं सकता था, लेकिन इस दूसरे युद्ध में उसे कन्नौज के गद्दार राजा जयचंद का साथ मिला। जयचंद ने दिल्ली की सत्ता को हथियाने के लालच में एक क्रूर और धोखेबाज लुटेरे से हाथ मिला लिया। उसने मौहम्मद गौरी को न केवल अपनी सेनी दी बल्कि पृथ्‍वीराज चौहान के पड़ाव और सेना की सूचना भी थी। मौहम्मद गौरी ने जयचंद के कहने पर धोखे से पृथ्‍वीराज की सेना पर रात में सोते हुए सैनिकों पर हमला कर दिया। युद्ध मे...

पृथ्वीराज चौहान

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पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी, क्या है तराइन युद्ध की स्टोरी

तराइन का प्रथम युद्ध : हमारे इतिहास में यह पढ़ाया जाता है कि मोहम्मद गौरी ने चौहानवंश के सम्राट पृथ्वीराज चौहान को तराइनके दूसरे युद्ध में हरा दिया था, लेकिन यह नहीं पढ़ाया जाता है कि पहली लड़ाई में क्या हुआ। पहली लड़ाई वर्ष 1191 में हुई थी जिसमें पृथ्वीराज चौहान ने न केवल मोहम्मद गौरी को हराया था बल्कि उसकी पूरी सेना को बंधक बना लिया था और कई दिनों तक उस लुटेरे को सम्राट ने अपनी जेल में रखा। बाद में उसे और उसकी सेना पर दया करके उसे छोड़ दिया गया और उसे उसके देश लौटने का मौका दिया। हालांकि कुछ इतिहासकार यह कहते हैं कि तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद गोरी की बुरी तरह हार हुई और उसकी सेना भाग खड़ी हुई। वह भी बुरी तरह से घायल होकर भाग गया था। कहते हैं कि लुटेरे गौरी की जान एक युवा खिलजी घुड़सवार ने बचाई थी। यह भी कहा जाता है कि यह लड़ाई भटिंडा सहित पंजाब पर गौरी के अधिकार को लेकर हुई थी। पृथ्‍वीराज पंजाब की धरती से इस लुटेरे के अधिकार को समाप्त करके राजपूतों का अधिकार स्थापित करना चाहते थे। मोहम्मद गौरी तराइन की पहली लड़ाई में बुरी तरह हारने और बंधक बना लेने और फिर छोड़े जाने के एक वर्ष बाद यानी 1192 में वह दोगुनी सेना लेकर पृथ्‍वीराज चौहान से लड़ने आया। हालांकि तब भी पृथ्‍वीराज चौहान को वह हरा नहीं सकता था, लेकिन इस दूसरे युद्ध में उसे कन्नौज के गद्दार राजा जयचंद का साथ मिला। जयचंद ने दिल्ली की सत्ता को हथियाने के लालच में एक क्रूर और धोखेबाज लुटेरे से हाथ मिला लिया। उसने मौहम्मद गौरी को न केवल अपनी सेनी दी बल्कि पृथ्‍वीराज चौहान के पड़ाव और सेना की सूचना भी थी। मौहम्मद गौरी ने जयचंद के कहने पर धोखे से पृथ्‍वीराज की सेना पर रात में सोते हुए सैनिकों पर हमला कर दिया। युद्ध मे...

पृथ्वीराज चौहान की जीवनी

दिल्ली के राज-सिंहासन पर बैठने वाले चौहान राजवंश के अंतिम शासक पृथ्वीराज चौहान का जन्म वर्ष 1168 में, अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान के यहाँ एक पुत्र के रूप में हुआ था। पृथ्वीराज चौहान एक प्रतिभाशाली बालक थे, जो सैन्य कौशल सीखने में बहुत ही निपुण थे। पृथ्वीराज चौहान में आवाज के आधार पर निशाना लगाने की कुशलता थी। जब वर्ष 1179 में पृथ्वीराज के पिता की एक युद्ध में मृत्यु हो गई थी, तब पृथ्वीराज ने 13 वर्ष की उम्र में अजमेर के राजगढ़ की गद्दी को संभाला था। पृथ्वीराज के दादा अंगम दिल्ली के शासक थे। उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साहस और बहादुरी के बारे में सुनने के बाद, उन्हें दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। पृथ्वीराज ने एक बार बिना किसी हथियार के अकेले ही एक शेर को मार डाला था। पृथ्वीराज चौहान को एक योद्धा राजा के रूप में जाना जाता था। जब पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के राज-सिंहासन की गद्दी पर बैठे, तब उन्होंने किला राय पिथौरा का निर्माण कराया। पृथ्वीराज का संपूर्ण जीवन वीरता, साहस, शौर्यवान और निरंतर महत्वपूर्ण कार्य करने की एक श्रृंखला में बँधा था। जब पृथ्वीराज चौहान केवल तेरह वर्ष के थे, तब उन्होंने गुजरात के पराक्रमी शासक भीमदेव को पराजित किया था। पृथ्वीराज चौहान के शत्रु जयचंद की बेटी संयुक्ता के साथ उनकी प्रेम कहानी बहुत ही प्रसिद्ध है। पृथ्वीराज चौहान उसके ‘स्वयंवर’ के दिन ही उसको साथ में लेकर चले गए थे। पृथ्वीराज चौहान जिस समय अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे, उस समय वर्ष 1191 में मोहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण कर दिया था और तराइन के पहले युद्ध में गोरी पराजित हो गया था। मोहम्मद गोरी की पराजित होने वाली सेना पर हमला करने के लिए कहा गया, लेकिन पृथ्वीराज चौहा...

Prithviraj Chauhan: जानें पृथ्वीराज चौहान के वंशज, उनकी वीरता और मोहम्मद ग़ोरी के साथ हुए युद्ध के बारे में

Prithviraj Chauhan: पृथ्वीराज चौहान को भारत के सबसे प्रसिद्ध और चौहान (चहमना) शासकों के राजपूत योद्धा राजा के रूप में जाना जाता है. उन्होंने राजस्थान में सबसे मजबूत राज्य की स्थापना की थी. हाल ही में बॉलीवुड फिल्म 'पृथ्वीराज चौहान' का टीज़र ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर रिलीज किया गया है. फिल्म पृथ्वीराज चौहान के सम्मान में बनाई गई है, जिसमें अक्षय कुमार, संजय दत्त, सोनू सूद और पूर्व मिस वर्ल्ड मानुषी छिल्लर ने अभिनय किया है. ट्रेलर हाल ही में Youtube पर रिलीज़ किया गया है. Watch the glorious history of Samrat पृथ्वीराज चौहान और उनके वंशज के बारे में दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाले चौहान वंश के अंतिम शासक पृथ्वीराज चौहान (पृथ्वीराज तृतीय) का जन्म 1166 AD में अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान के पुत्र के रूप में हुआ था. वे एक मेधावी बच्चा थे और सैन्य कौशल सीखने में बहुत तेज़ थे. साथ ही वे शासकों के चहमान (चौहान) वंश के एक राजपूत योद्धा राजा थे, जिनका राजस्थान में सबसे मजबूत राज्य था. वे आवाज़ के दम पर ही लक्ष्य को भेदने का हुनर रखते थे. पृथ्वीराज चौहान 1179 में तेरह वर्ष की आयु में अजमेर की गद्दी पर बैठे, जब उनके पिता की एक युद्ध में मृत्यु हो गई थी. पृथ्वीराज चौहान को योद्धा राजा के रूप में क्यों जाना जाता था? दिल्ली के शासक उनके दादा अंगम ने उनके साहस और बहादुरी के बारे में सुनकर उन्हें दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था. एक बार पृथ्वीराज चौहान ने बिना किसी शस्त्र के अकेले ही एक शेर को मार डाला था. इसलिए उन्हें योद्धा राजा के रूप में जाना जाता था. जब वे दिल्ली की गद्दी पर बैठे तो उन्होंने यहां किला राय पिथौरा का निर्माण कराया. उनका पूरा जीवन वीरता, साहस, वीरतापूर्ण कर्मों औ...