राम की शक्ति पूजा कविता के रचनाकार कौन है

  1. ‘राम की शक्ति
  2. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/राम की शक्ति
  3. Ram Ki Shakti Puja Pad
  4. शोध:राम की शक्ति
  5. राम की शक्ति पूजा की भाषा पर लेख
  6. राम की शक्ति पूजा की रचना ! Ramki shakti puja
  7. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की कालजयी रचना 'राम की शक्ति पूजा'
  8. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/राम की शक्ति
  9. Ram Ki Shakti Puja Pad
  10. राम की शक्ति पूजा की रचना ! Ramki shakti puja


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‘राम की शक्ति

‘राम की शक्ति-पूजा’ का शिल्प राम की शक्ति-पूजा का शिल्प उसके द्वन्द्वात्मक वस्तु विधान के कारण द्वन्द्वात्मक है। इसकी द्वन्द्वात्मकता कवि एवं कवि के नायक राम के स्तर पर है। राम की संघर्ष कथा और उनका आत्मधिक्कार, निराला की अपनी संघर्ष कथा और आत्मधिक्कार की याद दिलाता है। जिस तरह निराला सरोज स्मृति में दुःख की जीवन की कथा रही/ क्या कहूँ आज जो नहीं कहीं’ के द्वारा अपने दुःखी जीवन को कोसते नजर आते हैं। उसी तरह राम की शक्ति-पूजा में राम अपने आप को कोसते हैं।‘धिक जीवन को’ जो पाता ही आया विरोध, धिक साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध जिस तरह राम विरोधियों के सामने घुटने नहीं टेकते। अग्रीम मोर्चे पर, और संभल कर आते हैं उसी तरह निराला भी कभी हार नहीं मानते, हमेशा हार को जीत में बदलने की जिद पालते हैं। इस कविता में द्वन्द्वात्मकता प्रकाश और अंधकार, आशा और निराशा के बीच के संघर्ष को लेकर भी उभरती है। कविता सूर्यास्त के बाद अंधकार की प्रभावशाली भूमिका के साथ शुरू होती है। अंधकार के विरूद्ध सक्रिय है - कहीं चमकतीं दूर ताराएँँ। कहीं केवल जलती मशाल और कहीं पृथ्व-तनया-कुमारिका-छवि। अंततः नभ के ललाट पर रवि किरण के साथ अंधकार तिरोहित हो जाता है। इस कविता में काव्यात्मक आशा का संकेत है। द्वन्द्वात्मकता को कवि ने कहीं पदबंधो के स्तर पर राधव-लाधव-रावण-वारण; कहीं उपवाक्य के आधार पर - राक्षस-विरूद्ध प्रत्यूह- क्रुद्ध- कपि- विषम- हुहं; कही पंक्तियों के स्तर पर रखा है। विच्छुरितवह्नि -राजीवनयन- हतलक्ष्य-बाण लोहित लोचन-रावण-मद मोचन महियान कवि ने पूरी कविता में ही कॉनट्रास्ट गुंथ रखा है। द्वन्द्वात्मकता के कारण ही इस कविता का रचना विधान नाटकीय है। नाटकीयता दृश्य परिवर्त्तन से आती है। राम दिवा स्वपन की दश...

हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/राम की शक्ति

← राम की शक्ति-पूजा राम की शक्ति-पूजा संदर्भ राम की शक्तिपूजा, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित काव्य है। निराला जी ने इसका सृजन २३ अक्टूबर १९३६ को सम्पूर्ण किया था। कहा जाता है कि इलाहाबाद से प्रकाशित दैनिक समाचारपत्र 'भारत' में पहली बार 26 अक्टूबर 1936 को उसका प्रकाशन हुआ था। इसका मूल निराला के कविता संग्रह 'अनामिका' के प्रथम संस्करण में छपा। प्रसंग निराला ने राम की शक्ति पूजा ' राम को अंतर्द्वंदों से संपृक्त कर उसे अलौकिकता से उठाकर लौकिक धरातल पर स्थापित किया है। इस प्रकार राम आधुनिक भावबोध से जुड़ते दिखाई पड़ते हैं। व्याख्या ‘राम की शक्ति पूजा ‘ में निराला ने रावण जय -भय की आशंका को दूर करते हुए शक्ति की मौलिक कल्पना द्वारा शक्ति को अर्जित किया है। आज के राम -रावण समर में नर-वानर सेना को व्यापक क्षति पहुंची है और दोनों पक्षों की सेना वापस शिविर की ओर लौट रही है . एक ओर जहां राक्षसों की सेना में आज के रण को लेकर हर्ष व्याप्त है वहीँ दूसरी ओर राम की सेना व्यथित और निराश है और राक्षस सेना के हर्षोल्लास का कारण है शक्ति का उनकी तरफ होना। निराला प्रकृतिवादी अद्वैत चिंतन के आधार पर पंचतत्वों को शक्ति का रूप मानते हैं जिसमें आकाश और जल रावण के पक्ष में है जबकि पृथ्वी तनया सीता कारण यह स्थिर है -‘भूधर ज्यों ध्यान मग्न ‘ अर्थात रावण के पक्ष में नहीं है। इसलिए राक्षसों के पदबल सेपृथ्वी भी आतंकित और प्रकम्पित हो रही है। राम के पक्ष की शक्तियां ‘केवल जलती मशाल ‘ और निष्क्रिय पवन है। फिर निराला फोटो टेक्निक का प्रयोग करते हुए राम की नर -वानर सेना के प्रोटोकॉल का चित्र खींचते हैं।सेना अपने नायक राम के माखन जैसे चरण का अनुसरण करते हुए चल रहे हैं, पीछे लक्ष्मण हैं ,आज के समर ...

Ram Ki Shakti Puja Pad

Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • Ram Ki Shakti Puja Pad | राम की शक्ति पूजा के पद (20-23) दोस्तों! आज हम कॉलेज लेक्चरर के पाठ्यक्रम में लगी कविता Ram Ki Shakti Puja Pad | राम की शक्ति पूजा के अंतिम पदों का अध्ययन करने जा रहे है। अब तक हमने कुल 19 पदों का अध्ययन कर लिया है। उम्मीद है कि आपको अच्छे से समझ में आ गए होंगे। इसी क्रम में अगले और अंतिम 20 से 23 पदों की व्याख्या करने जा रहे है : आप सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कृत “राम की शक्ति पूजा कविता” का विस्तृत अध्ययन करने के लिए नीचे दी गयी पुस्तकों को खरीद सकते है। ये आपके लिए उपयोगी पुस्तके है। तो अभी Shop Now कीजिये : Ram Ki Shakti Puja Pad | राम की शक्ति पूजा में अब तक : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कृत “राम की शक्ति पूजा” एक लंबी कविता है। इसमें राम रावण का युद्ध चल रहा है। रावण का साथ स्वयं महाशक्ति देती है, जिससे राम रावण पर विजय प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। युद्ध अनिर्णायक स्थिति में रहता है। इस कारण श्री राम बहुत अधिक उदास हो जाते हैं। और सीता की चिंता करते हैं कि सीता को रावण से मुक्त कैसे किया जाये ? ऐसे में जामवंत श्री राम को सुझाव देते हैं कि उन्हें भी महाशक्ति की आराधना करनी चाहिए। ताकि महाशक्ति प्रसन्न होकर उनका साथ दे सके। श्री राम महा शक्ति की आराधना करने के लिए सामग्री जुटाते हैं। और हनुमान जी को 108 नीलकमल लाने को कहते हैं। अब आगे हम इसके अंतिम पदों का अध्ययन करेंगे, जो परीक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं : Ram Ki Shakti Puja| राम की शक्ति पूजा के अंतिम पदों की व्याख्या दोस्तों ! अब हम Ram Ki Shakti Puja Pad | राम की शक्ति पूजा के अंतिम 20 से 23 तक के पदों की विस्...

शोध:राम की शक्ति

‘राम की शक्ति-पूजा’ निराला जी की कालजयी रचना है। इस कविता का कथानक तो प्राचीन काल से सर्वविख्यात रामकथा के एक अंश से है, किन्तु निराला जी ने इस अंश को नए शिल्प में ढाला है और तात्कालिक नवीन संदर्भों से उसका मूल्यांकन किया है। युग की प्रवृत्ति के अनुसार कवि कथानक की प्रकृति में भी परिवर्तन लाता है। यदि निराला जी‘राम की शक्ति-पूजा’ कविता के कथानक की प्रकृति को आधुनिक परिवेश और अपने नवीन दृष्टिकोण के अनुसार नहीं बदलते तो यह कविता केवल अनुकरण मात्र और महत्त्वहीन होती। प्रकृति में परिवर्तन कवि विशेष भाव-भूमि पर पहुँचने के लिए करता है और इसके लिए कवि नए शिल्प का गठन करता है। कथानक की प्रकृति के संबंध में बच्चन सिंह के विचार कुछ इसी प्रकार है,-‘‘कथानक की अपनी स्वतंत्र सत्ता तो होती है, किंतु उसकी सुनिर्दिष्ट प्रकृति नहीं मानी जा सकती। रामचरितमानस की स्वतंत्र सत्ता है। लेकिन वाल्मीकीय रामायण में उसकी एक प्रकृति है। रामचरितमानस में दूसरी और साकेत में तीसरी।’’1 इस प्रकार निराला ने कथानक तो रामचरित ही लिया है किन्तु उसको अपने परिवेश की प्रकृति में ढाला है। यह कथानक अपरोक्ष रूप से अपने समय के विश्व युद्ध पर दृष्टिपात कराता है, जहाँ घनघोर निराशा में कवि साधारणजन केहृदय में आषा की लौ दिखाने की कोशिश की है, जो राम-रावण के युद्ध के वृत्तांत से ही संभव थी। निराला जी निराला ने राम नाम को ही इस कविता में प्रतिपादित क्यो किया ? जबकि यह शब्द तो अपने संबोधन से ही अवतार का संबंध स्पष्ट करता है, क्योंकि मध्यकालीन साहित्यकारों ने इस नाम को अवतार के रुप में मुख्यतः दर्शाया है और वह उसी रुप में बंधा हुआ है। राम-नाम के संबंध में नंददुलारे बाजपेयी का कथन है,-‘‘ उनके सम्मुख कोई बने बनाये आदर्श या नपे-त...

राम की शक्ति पूजा की भाषा पर लेख

चित्रांकन:रोहित रूसिया,छिन्दवाड़ाआधुनिक हिंदी कविता में ‘सूर्यंकांत त्रिपाठी ‘निराला’ अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। वे आधुनिक युग के सर्वांधिक मौलिक क्षमता से सम्पन्न कवि हैं, इसका प्रमाण कवि का रचनात्मक वैविध्य स्वयं प्रस्तुत करता है। कोई भी कवि या लेखक अपने समय में व्याप्त मान्यताओं, विचारधाराओं और परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना रचनाकर्म में प्रवृत्त नहीं हो सकता। वह अपने युग में व्याप्त विषमताओं और समानताओं को अपनी रचना में चित्रित करता है। निराला जी अपने काव्य के माध्यम से अपने युग की परिस्थितियों से समाज को अवगत कराने में पूर्ण सफल रहे हैं। वे युग-चेतन कवि है, इसका उदाहरण उनका पूँजीवाद के प्रति विद्रोह ‘कुकुरमुत्ता’ कविता में उग्र स्वर प्रत्यक्ष प्रकट हुआ है। ‘राम की शक्ति-पूजा’ निराला जी की कालजयी रचना है। इस कविता का कथानक तो प्राचीन काल से सर्वविख्यात रामकथा के एक अंश से है, किन्तु निराला जी ने इस अंश को नए शिल्प में ढाला है और तात्कालिक नवीन संदर्भों से उसका मूल्यांकन किया है। युग की प्रवृत्ति के अनुसार कवि कथानक की प्रकृति में भी परिवर्तन लाता है। यदि निराला जी ‘राम की शक्ति-पूजा’ कविता के कथानक की प्रकृति को आधुनिक परिवेश और अपने नवीन दृष्टिकोण के अनुसार नहीं बदलते तो यह कविता केवल अनुकरण मात्र और महत्त्वहीन होती। प्रकृति में परिवर्तन कवि विशेष भाव-भूमि पर पहुँचने के लिए करता है और इसके लिए कवि नए शिल्प का गठन करता है। कथानक की प्रकृति के संबंध में बच्चन सिंह के विचार कुछ इसी प्रकार है,-‘‘कथानक की अपनी स्वतंत्र सत्ता तो होती है, किंतु उसकी सुनिर्दिष्ट प्रकृति नहीं मानी जा सकती । रामचरितमानस की स्वतंत्र सत्ता है। लेकिन वाल्मीकीय रामायण में उसकी एक प्रकृति है।...

राम की शक्ति पूजा की रचना ! Ramki shakti puja

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सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की कालजयी रचना 'राम की शक्ति पूजा'

‘राम की शक्ति पूजा’ (Ram ki Shakti Puja) काव्य को निराला जी ने 23 अक्टूबर 1936 में पूरा किया था. इलाहाबाद से प्रकाशित दैनिक समाचारपत्र ‘भारत’ में पहली बार 26 अक्टूबर 1936 को उसका प्रकाशन हुआ था. ‘राम की शक्ति पूजा’ कविता 312 पंक्तियों की एक लम्बी कविता है. इसमें ‘महाप्राण’ के स्वरचित छंद ‘शक्ति पूजा’ का प्रयोग किया गया है. इस कविता में कवि ने राम को एक साधारण मानव के धरातल पर खड़ा किया है, जो थकता भी है, टूटता भी है और उसके मन में जय एवं पराजय का भीषण द्वन्द्व भी चलता है. ‘राम की शक्ति पूजा’ की कुछ पंक्तियां- रवि हुआ अस्त, ज्योति के पत्र पर लिखा अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर आज का तीक्ष्ण शरविधृतक्षिप्रकर, वेगप्रखर, शतशेल सम्वरणशील, नील नभगर्जित स्वर, प्रतिपल परिवर्तित व्यूह भेद कौशल समूह राक्षस विरुद्ध प्रत्यूह, क्रुद्ध कपि विषम हूह, विच्छुरित वह्नि राजीवनयन हतलक्ष्य बाण, लोहित लोचन रावण मदमोचन महीयान, राघव लाघव रावण वारणगत युग्म प्रहर, उद्धत लंकापति मर्दित कपि दलबल विस्तर, अनिमेष राम विश्वजिद्दिव्य शरभंग भाव, विद्धांगबद्ध कोदण्ड मुष्टि खर रुधिर स्राव, रावण प्रहार दुर्वार विकल वानर दलबल, मुर्छित सुग्रीवांगद भीषण गवाक्ष गय नल, वारित सौमित्र भल्लपति अगणित मल्ल रोध, गर्जित प्रलयाब्धि क्षुब्ध हनुमत् केवल प्रबोध, उद्गीरित वह्नि भीम पर्वत कपि चतुःप्रहर, जानकी भीरू उर आशा भर, रावण सम्वर लौटे युग दल, राक्षस पदतल पृथ्वी टलमल, बिंध महोल्लास से बार बार आकाश विकल वानर वाहिनी खिन्न, लख निज पति चरणचिह्न चल रही शिविर की ओर स्थविरदल ज्यों विभिन्न. ‘राम की शक्तिपूजा’ (Ram Ki Shakti Pooja) की अन्तिम पंक्तियां में बताया गया है कि शक्ति की उपासना में लीन राम के सिर उठाते ही पूरा ब्रह्मा...

हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/राम की शक्ति

← राम की शक्ति-पूजा राम की शक्ति-पूजा संदर्भ राम की शक्तिपूजा, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित काव्य है। निराला जी ने इसका सृजन २३ अक्टूबर १९३६ को सम्पूर्ण किया था। कहा जाता है कि इलाहाबाद से प्रकाशित दैनिक समाचारपत्र 'भारत' में पहली बार 26 अक्टूबर 1936 को उसका प्रकाशन हुआ था। इसका मूल निराला के कविता संग्रह 'अनामिका' के प्रथम संस्करण में छपा। प्रसंग निराला ने राम की शक्ति पूजा ' राम को अंतर्द्वंदों से संपृक्त कर उसे अलौकिकता से उठाकर लौकिक धरातल पर स्थापित किया है। इस प्रकार राम आधुनिक भावबोध से जुड़ते दिखाई पड़ते हैं। व्याख्या ‘राम की शक्ति पूजा ‘ में निराला ने रावण जय -भय की आशंका को दूर करते हुए शक्ति की मौलिक कल्पना द्वारा शक्ति को अर्जित किया है। आज के राम -रावण समर में नर-वानर सेना को व्यापक क्षति पहुंची है और दोनों पक्षों की सेना वापस शिविर की ओर लौट रही है . एक ओर जहां राक्षसों की सेना में आज के रण को लेकर हर्ष व्याप्त है वहीँ दूसरी ओर राम की सेना व्यथित और निराश है और राक्षस सेना के हर्षोल्लास का कारण है शक्ति का उनकी तरफ होना। निराला प्रकृतिवादी अद्वैत चिंतन के आधार पर पंचतत्वों को शक्ति का रूप मानते हैं जिसमें आकाश और जल रावण के पक्ष में है जबकि पृथ्वी तनया सीता कारण यह स्थिर है -‘भूधर ज्यों ध्यान मग्न ‘ अर्थात रावण के पक्ष में नहीं है। इसलिए राक्षसों के पदबल सेपृथ्वी भी आतंकित और प्रकम्पित हो रही है। राम के पक्ष की शक्तियां ‘केवल जलती मशाल ‘ और निष्क्रिय पवन है। फिर निराला फोटो टेक्निक का प्रयोग करते हुए राम की नर -वानर सेना के प्रोटोकॉल का चित्र खींचते हैं।सेना अपने नायक राम के माखन जैसे चरण का अनुसरण करते हुए चल रहे हैं, पीछे लक्ष्मण हैं ,आज के समर ...

Ram Ki Shakti Puja Pad

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राम की शक्ति पूजा की रचना ! Ramki shakti puja

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