संस्कृत की स्पेलिंग

  1. संस्कृत वर्णमाला – स्वर
  2. 201+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित
  3. संस्कृत छंदों के उल्लेख करने में त्रुटियां – एक दृष्टांत: “मंगलम् भगवान …”
  4. संस्कृत
  5. 100+ संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित
  6. संस्कृत भाषा का इतिहास
  7. 50+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित


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संस्कृत

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संस्कृत वर्णमाला – स्वर

हम इससे पहले ही – संस्कृतवर्णमाला की अंग्रेजी, उर्दू और चीनी के साथ तुलना– इस लेख में तथा निम्न यूट्यूब वीडिओ के द्वारा स्पष्ट कर चुके हैं कि किस तरह से संस्कृत वर्णमाला अंग्रेजी, उर्दू और चीनी से बेहतर है। अब चूँकि हमने संस्कृत वर्णमाला का महत्त्व जान लिया है तो अब बारी बारी से वर्णमाला का अभ्यास करते हैं। हम अपने अभ्यास की शुरुआत स्वरों से कर रहे हैं। यूट्यूब वीडिओ – स्वर किसे कहते हैं? जैसे कि संस्कृत वर्णमाला में स्वर तथा व्यञ्जनों का अलग अलग-विभाग (जो अंग्रेजी में नहीं) होता है। अब प्रश्न है – ये स्वर होते क्या है? क्यों इन्हे बाकी व्यञ्जनों से अलग रखते हैं? हमने संगीत में भी स्वर सुने हैं। (सा। रे। ग। म …) परन्तु संगीत के स्वर अलग होते हैं। हम भाषा के स्वरों की बात कर रहे हैं। अब इन स्वरों को भी स्वर यह नाम कैसे मिला? इस विषय में महर्षि पतञ्जलि कहते हैं – स्वयं राजन्ते इति स्वराः यानी जो स्वयं (खुद से ही) विराजमान हो जाते हैं वे स्वर कहलाते हैं। इसी के आधार पर हम स्वरों की व्याख्या पढ़ रहे हैं – स्वर की व्याख्या • स्वर उन ध्वनियों को कहते हैं जो बिना किसी अन्य वर्णों की सहायता के उच्चारित किए जाते हैं। • स्वतन्त्र रूप से बोले जाने वाले वर्ण स्वर कहलाते हैं। ये थी किताबी व्याख्याएं। अब हम आसानी से समझाते हैं। स्वर वे होते हैं, जिनको अपने मुंह से निकालने के लिए किसी दूसरे वर्ण की आवश्यकता नहीं होती है। जैसे ‘अ’ एक स्वर है। यदि हमें मुंह से अ की आवाज़ निकालनी है, तो बस बोल दीजिए – अ। बात खतम। केवल अ ही क्यों? कोई अन्य स्वर भी ले लीजिए। इ, उ, ए इत्यादि। हर एक स्वर स्वतन्त्र होता है। अपने आप उच्चारित होता है। इसके विपरीत व्यंजन होते हैं। कोई भी व्यञ्जन बिना किसी स्वर की स...

201+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित

Sanskrit Shlokas With Meaning in Hindi : भारत में संस्कृत भाषा को सभी भाषाओ के जननी माना जाता है, संस्कृत दुनिया की सबसे पुराणी भाषा है संस्कृत की महानता Sanskrit ke best slokas से है देश में संस्कृत भाषा को देव भाषा की उपाधि दिया गया है पुराने समय से ही संस्कृत श्लोको के आधार पर मानव रहा है। अगर आप भारतीय है और हिन्दू धर्म से तालुक रखते है तो आपको संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlokas) का ज्ञान होना चाहिए मनुष्य जाती के लिए संस्कृत हमारे जीवन का एक अनमोल हिस्सा रहा है पुराने समय से ही ऋषि-मुनियों ने कई सारे अद्भुत संस्कृत भाषा (sanskrit slokas) में बेहतरीन आयुषः क्षण एकोऽपि सर्वरत्नैर्न न लभ्यते। नीयते स वृथा येन प्रमादः सुमहानहो ॥ अर्थात् : सभी कीमती रत्नों से कीमती जीवन है जिसका एक क्षण भी वापस नहीं पाया जा सकता है। इसलिए इसे फालतू के कार्यों में खर्च करना बहुत बड़ी गलती है। (3) आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण, लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्। दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना, छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्॥ अर्थात् : दुर्जन की मित्रता शुरुआत में बड़ी अच्छी होती है और क्रमशः कम होने वाली होती है। सज्जन व्यक्ति की मित्रता पहले कम और बाद में बढ़ने वाली होती है। इस प्रकार से दिन के पूर्वार्ध और परार्ध में अलग-अलग दिखने वाली छाया के जैसी दुर्जन और सज्जनों व्यक्तियों की मित्रता होती है। (4) यमसमो बन्धु: कृत्वा यं नावसीदति। अर्थात् : मनुष्य के शरीर में रहने वाला आलस्य ही उनका सबसे बड़ा शत्रु होता है, परिश्रम जैसा दूसरा कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता है। (5) परान्नं च परद्रव्यं तथैव च प्रतिग्रहम्। परस्त्रीं परनिन्दां च मनसा अपि विवर्जयेत।। अर्थात् : पराया...

संस्कृत छंदों के उल्लेख करने में त्रुटियां – एक दृष्टांत: “मंगलम् भगवान …”

हिंदू परिवारों के धार्मिक कर्मकांडों के निमंत्रणपत्रों पर अक्सर देव-वंदना के छंद मुद्रित देखने को मिलते हैं । कम से कम उत्तर भारतीयों में तो यह परंपरा प्रचलित है ही । चूंकि शुभकार्यों का आरंभ गणेश-पूजन से होता है, अतः गणेश-वंदना के छंदों का प्रयोग सर्वाधिक मिलता है । कतिपय छंदों के उल्लेख के साथ इस विषय की चर्चा मैंने अपने विष्णु-वंदना के श्लोक भी पढ़ने को मिलते हैं । एक श्लोक, जिसका उल्लेख संभवतः सर्वाधिक किया जाता है, को इस लेख के आंरभ में चित्र में दिया गया है, जिसे मैंने किसी निमंत्रणपत्र से ही स्कैन किया है । मैं इसको दुबारा सामान्य पाठ के रूप में यथावत् (प्रस्तुत चित्र में जैसा है) आगे लिख रहा हूं: मंगलम् भगवान विष्णुः, मंगलम् गरूणध्वजः । मंगलम् पुण्डरी काक्षः, मंगलाय तनो हरिः ॥ इस स्थल पर मेरा मुख्य उद्येश्य इस छंद की व्याख्या करना अथवा इसकी उपयोगिता/अर्थवत्ता स्पष्ट करना नहीं है । मैं यह बताना चाहता हूं कि कई बार लोग संस्कृत मंत्रों/छंदों का दोषपूर्ण पाठ लिखते हैं और वैसा ही दोषपूर्ण उच्चारण करते हैं । आगे कुछ कहूं इसके पहले इस श्लोक को लिखने में कौन-कौन-सी त्रुटियां मेरी दृष्टि में आई हैं उन्हें बता दूं । एक त्रुटि तो यह है कि गरुण शब्द के बदले गरुड होना चाहिए । इसे मैं टाइप करने में गलती मान लेता हूं । इसके अतिरिक्त मैं दो प्रकार की त्रुटियां देखता हूं: पहले वे जो गंभीर हैं और अर्थ का अनर्थ कर सकती हैं, या श्लोक को निरर्थक बना देती हैं । दूसरे वे जो संस्कृत के छंदों को लिपिबद्ध करने के नियमों अथवा परंपराओं के अनुसार नहीं हैं । पहले प्रकार के दोष स्पष्ट कर दूं । उक्त श्लोक के तीसरे चरण में ‘पुण्डरी काक्षः’ लिख गया है । ऐसा लगता है कि मानो ‘पुण्डरी’ एवं ‘काक्षः’ दो...

संस्कृत

संस्कृत( Sanskrit) संस्कार की हुई भाषा। इसकी गणना संसार की प्राचीनतम ज्ञात भाषाओं में होती है। संस्कृत को देववाणी भी कहते हैं। विशेषताएँ • • आधुनिक विद्वान मानते हैं कि संस्कृत भाषा पाँच हज़ार • • वर्तमान में भी सभी क्षेत्रों में इस • हिंदुओं के सांस्कारिक कार्यों में आज भी यह प्रयुक्त होती है। इसी कारण ग्रीक और लैटिन आदि प्राचीन मृत भाषाओं अमर भाषा है। • • ईशोपनिषद इसी का अंतिम भाग है। • • • संस्कृत भाषा के दो रूप माने जाते हैं वैदिक या छांदस और लौकिक। चार वैदिक या छांदस कहलाती है। इसके बाद के ग्रंथों को लौकिक कहा गया है। • • उपनिषदों की कुल ज्ञात संख्या 18 है जिनमें ये दस प्रमुख हैं- ईश, बृहदारण्यक, ऐतरेय, कौषीतकी, केन, छांद्योग्य, तैत्तरीय, कठ, मंड्रक, और मांडूक्य। ये उपनिषद प्राचीन हैं। कुछ की रचना बहुत बाद तक होती रही है, जैसे 'अल्लोपनिषद' जो स्पष्टत: • संस्कृत, • • हिन्दुओं के सभी पूजा-पाठ और धार्मिक संस्कार की भाषा संस्कृत ही है। • हिन्दुओं, • भारतीय भाषाओं की तकनीकी शब्दावली भी संस्कृत से ही व्युत्पन्न की जाती है। • संस्कृत, भारत को एकता के सूत्र में बाँधती है। • संस्कृत का प्राचीन साहित्य अत्यधिक प्राचीन, विशाल और विविधता से पूर्ण है। इसमें • भारत की संस्कृति का यह एकमात्र सुदृढ़ आधार है। भारत की लगभग सभी भाषाएं अपने शब्द-भंडार के लिए आज भी संस्कृत पर आश्रित हैं। • संस्कृत को • पौराणिक महत्त्व हिन्दू समाज वेदों को अनादि और अपौरुषेय मानता आया है लेकिन आधुनिक विद्वानों के एक वर्ग ने • • स्मृतियां, जिनमें ' संस्कृत विश्वविद्यालयों की सूची क्रम संख्या स्थापना वर्ष नाम स्थान 1 1791 2 1961 3 1962 4 1962 5 1970 6 1981 7 1993 8 1997 9 2001 10 2005 11 2005 12 2006 13 2008 ...

100+ संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित

Sanskrit Suktiyan Arth Sahit सूक्तियाँ हमारी मानसिकता व हमारे शुद्ध विचारों का निर्माण करती हैं, जिनके अनुसरण से जीवन को सरलता से जिया जा सकता है। यह जीवन में सुहृद् मित्र की भाँति हमारा पथ-प्रदर्शन करती हैं। आज की इस पोस्ट में हम आपको मुख्य 100 से भी अधिक सूक्तियां (नीतिवचन) को बतायेंगे, इन्हें आप अपने जीवन में जरूर अपनाये। संस्कृत सूक्तियां हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit Suktiyan Arth Sahit संस्कृत सूक्तियाँ अतिथि देवो भव। अर्थ– अतिथि हमारे लिए भगवान के स्वरूप होता है। असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय। अर्थ– जो ज्ञान असत्य से सत्य की ओर ले जायें और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जायें। तमसो मा ज्योतिर्गमय। अर्थ– अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाये। वसुधैव कुटुंबकम। अर्थ– पृथ्वी के सभी वासी एक परिवार है। परोपकाराय सतां विभूतय:। अर्थ– सज्जनों की विभूति हमेशा परोपकार के लिए होती है। हम 5 सूक्तियां संस्कृत में अर्थ सहित पढ़ चुके है, चलिए आगे पढ़ते है। विद्या विहीन पशु। अर्थ– विद्याविहीन (विद्या को ग्रहण ना करने वाला) मनुष्य पशु के समान होता है। आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महानरिपु:। अर्थ– आलस्य घोर शत्रु है। Image: संस्कृत में 10 सूक्ति (sukti in sanskrit) अहिंसा परमो धर्म:। अर्थ– अहिंसा ही सबसे बड़ा (परम) धर्म होता है। मा कश्चिद् दुख भागभवेत। अर्थ– कोई दु:खी न हो अर्थात सभी सुखी रहे। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। अर्थ– हमारी जन्मस्थली स्वर्ग से भी बड़ी होती है। हम 10 सूक्तियां संस्कृत में अर्थ सहित पढ़ चुके है, चलिए आगे पढ़ते है। नास्तिको वेदनिन्दकः। अर्थ– वेदों की निन्दा करने वाला इंसान नास्तिक होता है। मा गृधः कस्यस्विद्धनम्। अर्थ– किसी दूसरे के धन का लोभ नहीं करना चाहिए। योग: कर्...

संस्कृत भाषा का इतिहास

संस्कृत भाषा का भारत में उद्भव महर्षि पाणिनी द्वारा किया गया परंतु अन्य भाषाओं की तरह कोई गांव या क्षेत्र का पता चला है जहां के शिक्षित और अशिक्षित लोग संस्कृत भाषा में बातचीत कर अपनी दिनचर्या बिताते हों। ऋग्वेद सहित अधिकांश संस्कृत ग्रंथों की रचनाएं भी सातवीं से बारहवीं शताब्दी ईस्वी में एक खास वर्ग के विद्वानों ने की थी और इसे देवताओं की और संसार की सबसे पुरानी भाषा की उपाधि दे दी थी। संस्कृत से भी पुरानी भाषाओं में पालि और प्राकृत जैसी भाषाओं की अपनी लिपि में कई पुरातात्विक साक्ष्य आज उपलब्ध हैं जबकि संस्कृत का ऐसा कोई प्रमाण आज तक नहीं मिला है। फिर भी एक खास वर्ग और ब्राह्मण विद्वानों ने संस्कृत भाषा के माध्यम से अपना वर्चस्व स्थापित करने के प्रयास में अपन कल्पना मिश्रित तर्क देते हुए कहा है कि जिस प्रकार देवता अमर हैं उसी प्रकार संस्कृत भाषा भी अपने विशाल-साहित्य, लोक हित की भावना, विभिन्न प्रयासों तथा पाँच सहस्र वर्षों से बहता चला आ रहा है।

50+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित

संस्कृत भाषा से ही अन्य भाषाओं का उद्गम हुआ है। यह भाषा ही नहीं है यह अपने आप में पूरे वेदो, शास्त्रों और ब्रह्मांड के संपूर्ण ज्ञान को समेटे हुए है। आज संस्कृत भाषा विलुप्त होती जा रही है जोकि हमारी भारतीय संस्कृति के लिए अच्छा नहीं है यह भाषा भारत की रीड की हड्डी है इसे उन्हें जीवित करना हमारा लक्ष्य है। विषय-सूची 1 • • • • • • Sanskrit Shlokas With Meaning in Hindi (1) ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।। अर्थात् : गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ। (2) तुलसी श्रीसखि शिवे शुभे पापहारिणी पुण्य दे। दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥ अर्थात् : हे तुलसी ! तुम लक्ष्मी की सहेली, कल्याणप्रद, पापों का हरण करने वाली तथा पुण्यदात्री हो। नारायण भगवान के मन को प्रिय लगने वाली आपको नमस्कार है। दीपक के प्रकाश को मेरे पापों को दूर करने दो, दीपक के प्रकाश को प्रणाम। (3) आदि देव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर:। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ।1। अर्थात् : हे आदिदेव भास्कर! (सूर्य का एक नाम भास्कर भी है), आपको प्रणाम है, आप मुझ पर प्रसन्न हो, हे दिवाकर! आपको नमस्कार है, हे प्रभाकर! आपको प्रणाम है। (4) वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ अर्थात् : हे घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर, करोड़ों सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें ( करने की कृपा करें)। (5) ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात॥ अर्थात् : ह...