शंकर जी का फोटो

  1. प्रणव मंदिर
  2. Shiv Shankar Ji Ki Aarti lyrics in Hindi: पढ़े शंकर जी की आरती, ओम जय शिव ओंकारा और श्री शिवशंकरजी, Read Shankar ji's aarti, Om Jai Shiv Omkara and Shri Shivshankarji.
  3. कौन थे भगवान शिव के प्रथम शिष्य, जानें भगवान शिव से जुड़े 7 अनजान रहस्य
  4. श्री. शंकर महाराज


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प्रणव मंदिर

प्रणव मंदिर - ओङ्कार आश्रम ‘‘ओ३म् क्रतो स्मर।’’ - हे जीव तू ओम का स्मरण कर। - प्रणव मंदिर ओङ्कार आश्रम की स्थापना एवं प्रणव-पूजन-पद्धति के संकलन के संबंध में परमपूज्य महर्षि ओंङ्कारानन्द सरस्वती जी के विचार - वेद एवम् पुराणों में ओम् की महिमा का प्रचुर मात्रा में वर्णन है। दुर्भाग्यवश भारतीय प्रणव अर्थात ओम् की उपासना की प्राचीन विधि को भूल गये हैं। जिस प्रकार हम वेदों से विमुख हो गये हैं उसी प्रकार वेद उपदिष्ट उपासनाओं को भी खो बैंठे है। इस महत्वपूर्ण बात की ओर परमपूज्य गुरूदेव जी महाराज का ध्यान आकर्षित हुआ। उन्होने अल्प समय में ही मेरी दीक्षा तथा शिक्षा को समाप्त करके अपना परमकल्याणकारी आर्शीवाद प्रदान करते हुए संसार में सेवार्थ विचरण करने हेतु सन् 1950 में इन शब्दों के साथ पृथक कर दिया। ‘‘याद रखो! आत्मा की उन्नति सदा परोपकार और सेवा से होती है। सेवा से पवित्र हुआ आत्मा प्रभु ओंङ्कारेश्वर की ओर झुकता है। प्रणव अर्थात ओम् की उपासना केवल योगियो तक ही सीमित हो गयी है उससे परामात्मा की अन्य संताने लाभान्वित नहीं हो पा रही हैं। इस विद्या का प्रचार कर देना तुम्हारा पुनीत कर्तव्य होगा। प्रभु परमेश्वर तुमसे यदि सेवा ले सके तो मैं कृतार्थ हूँगा।‘‘ बस इन्हीं गुरू आदेश को लेकर सन् 1950 मे ही ओम-जप-समाज की स्थापना करके नैनीताल जिले में मैंने प्रचार आरम्भ कर दिया। प्रणव प्रचार कार्य के साथ ही गुरूदेव के आदेशानुसार रोगियों तथा गरीबों की सेवा भी आरम्भ कर दी। गुरू आदेश के लगभग 19 वर्शो बाद प्रणव मन्दिर की स्थापना ज्येष्ठ पूर्णिमा संवत 2025 वि0 में ग्राम-बैजनाथ पुर पत्रालय - बालापार जनपद गोरखपुर में हो पायी । इन 11 वर्षों में चिकित्सा की व्यवस्था के द्वारा जन सेवा का कार्य भी होता रहा त...

Shiv Shankar Ji Ki Aarti lyrics in Hindi: पढ़े शंकर जी की आरती, ओम जय शिव ओंकारा और श्री शिवशंकरजी, Read Shankar ji's aarti, Om Jai Shiv Omkara and Shri Shivshankarji.

कहा जाता है कि भगवान शिव की आरती के बिना पूजा अधूरी मानी गई है. शिवजी की आरती घी लगी हुई रुई की बत्ती और कर्पूर से करनी चाहिए. आरती शुरू करने से पहले और बाद में शंख बजाना भी शुभ माना जाता है. ऐसे में हम आपके लिए इस महाशिवरात्रि पर दो आरती लेकर आए है. Om jai Shiv Omkara... और Shri shiv shankar Aarti... Shivaji ki Aarti: ‘ओम जय शिव ओंकारा’ ॐ जय शिव ओंकारा,स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,अर्द्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ एकानन चतुराननपञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासनवृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ दो भुज चार चतुर्भुजदसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखतेत्रिभुवन जन मोहे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ अक्षमाला वनमालामुण्डमाला धारी। त्रिपुरारी कंसारीकर माला धारी॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ श्वेताम्बर पीताम्बरबाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुणादिकभूतादिक संगे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ कर के मध्य कमण्डलुचक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारीजगपालन कारी॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ ब्रह्मा विष्णु सदाशिवजानत अविवेका। मधु-कैटभ दो‌उ मारे,सुर भयहीन करे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ लक्ष्मी व सावित्रीपार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी,शिवलहरी गंगा॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ पर्वत सोहैं पार्वती,शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन,भस्मी में वासा॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ जटा में गंग बहत है,गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत,ओढ़त मृगछाला॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ काशी में विराजे विश्वनाथ,नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत,महिमा अति भारी॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ त्रिगुणस्वामी जी की आरतिजो कोइ नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी,मनवान्छित फल पावे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ Shivaji ki Aarti: ‘आरती श्री शिवशंकरजी की ’ हर हर हर महादेव! सत्य, सनातन, सुन्दर, शिव सबके स्वामी। अविकारी अविनाशी, अज अन्तर्यामी॥ हर हर ह...

कौन थे भगवान शिव के प्रथम शिष्य, जानें भगवान शिव से जुड़े 7 अनजान रहस्य

शिव या महादेव सनातन संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि कई नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। शंकर जी को संहार का देवता कहा जाता है। शंकर जी सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। पुराणों के अनुसार भोलेनाथ स्वयंभू है लेकिन भोलेनाथ से जुड़ी की रहस्यमयी कथाएं प्रचलित हैं। आइए आपको भगवान शिव से जुड़े कुछ ऐसे रहस्यों के बारे में बताते हैं जो शायद ही लोगों को पता है। भगवान शिव की उत्पत्ति भगवान शिव स्वयंभू हैं, लेकिन पुराणों में उनकी उत्पत्ति का विवरण मिलता है। विष्णु पुराण के अनुसार जहां भगवान विष्णु ब्रह्माजी की नाभि से उत्पन्न हुए वहीं शिव विष्णु जी के माथे के तेज से उत्पन्न हुए, ऐसा उल्लेख मिलता है। विष्णु पुराण के अनुसार माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिव-शंभू हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं। शिव और शंकर एक ही हैं ? कुछ पुराणों में भगवान शंकर को शिव इसलिए कहते हैं क्योंकि वे निराकार शिव के समान है। निराकार शिव को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। शंकर को हमेशा योगी के रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलि...

श्री. शंकर महाराज

श्री. शंकर महाराज - धनकवडी - एक श्रीमंत अनुभव, लहानपणा पासून मी ऐकत आलो आहे कि गुरु आपल्याला शोधात असतो, आपण फक्त त्यांच्या आगमनाची वाट बघायची. काहीच कळाले नाही. कारण वयच असे होते. असे वाटत होते कि फक्त शांत बसून राहायचे तर कशाला शोधाशोध करा. बसा स्वस्थ. खरे म्हणजे आतून ती ओढ पण वाटत नव्हती. मला सगळयात कंटाळा आणणारे काम म्हणजे देव पूजा वाटायचे. जेव्हा जेव्हा पूजा करायची वेळ माझ्या वर यायची तेव्हा मी असे वागायचो कि आता आठवले तरी लाज वाटते. ( देव, मला क्षमा कर ). साधारण १९९२ -९३ साल असेल मी माझ्या एका नातेवाईकाबरोबर बोलत होतो आणि एक गृहस्थ त्याच्या ओळखीचे आले मला आठवत त्यांचे नाव श्री. राव होते. काही वर्ष ते भुसावळला पण होते. त्यांनी एका पुस्तक चा उल्लेख केला होता " साद देती हिम शिखरे" त्याच बरोबर त्यांनी मला सूचना दिली कि तू ते पुस्तक वाचू नकोस. कारण काय तर माझे आताच विचार वैराग्याचे आहेत पुस्तक वाचून मी सन्यास घ्यायचो अशी त्यांना भीती वाटत होती. एखादी गोष्ट करू नको म्हटले कि प्रथम तीच गोष्ट करावीशी प्रत्येकाला वाटते तसे मला पण झाले. मुळात मला वाचनाची व्यसन होतेच. त्यात असे कळल्यावर मग आता ते पुस्तक वाचायचे ठरवले. पुस्तक आणले शांतपणे वाचन सुरु केले. मस्त अशी समाधी लागली. वाचन एका दमात पूर्ण केले. खूप आवडले. मला सर्वात आवडले तर त्या पुस्तकाची प्रस्तावना. त्यात श्री. शंकर महाराजानबद्दल माहिती दिली आहे. माझ्या सारखेच नास्तिक श्री. प्रधानांना, महाराजांनी कसे विचारले? हे आठवून मनाची अशी धारणा झाली कि आता पुण्याला गेलो कि धनकवडीला जायचेच. तसा गेलोहि. तिथल्या सिगारेट पेटवून ठेवलेल्या बघून लक्षात आले कि चौकटीतले महाराज नाही, हे अवलिया. मनात ओढ निर्माण झाली. पण ती तेवढ्या पुरतीच. पु...