समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए

  1. आधुनिकता
  2. Recent questions from topic समाजशास्त्र एवं समाज
  3. समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा हिंदी में
  4. समाजशास्त्र का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं
  5. सामाजिक स्तरीकरण
  6. समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान के संबंधों की विवेचना कीजिए।
  7. MA Semester
  8. समाजशास्त्र। समाजशास्त्र का अर्थ। sociology
  9. समाजशास्त्र का विषय
  10. समाज एवं शिक्षा और परिभाषा


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आधुनिकता

आधुनिकता शब्द आमतौर पर उत्तर-पारम्परिक, उत्तर-मध्ययुगीन ऐतिहासिक अवधि को सन्दर्भित करता है, जो सामन्तवाद (भू-वितरणवाद) से यह बहुत ही सही कहा गया हैं कि "आधुनिकीकरण पुरानी प्रक्रिया के लिए चालू शब्द है। यह सामाजिक परिवर्तन की वह प्रक्रिया हैं, जिससे कम विकसित समाज विकसित समाजों की सामान्य विशेषेताओं को प्राप्त करते हैं।" अनुक्रम • 1 सम्बन्धित शब्द • 2 आधुनिकता के चरण • 3 आधुनिकता की परिभाषा • 3.1 राजनीतिक दृष्टि से • 3.2 सामाजिक दृष्टि से • 3.3 वैज्ञानिक दृष्टि से • 3.4 कलात्मक दृष्टि से • 4 परिभाषित आधुनिकता • 5 इन्हें भी देखें • 6 सन्दर्भ • 7 आगे पढ़ें • 8 इन्हें भी देखें • 9 बाहरी कडियां सम्बन्धित शब्द [ ] अंग्रेजी शब्द "मॉडर्न" (आधुनिक) ( मोडो से बना लैटिन मोडर्नस, "बस अभी") का प्रयोग 5 वीं शताब्दी से मिलता है, जो मूल रूप से ईसाई युग को बुतपरस्त युग से अलग करने के सन्दर्भ में है, इसके बावजूद इस शब्द का सामान्य उपयोग 17 वीं शताब्दी में ही होना शुरू हुआ जो कि क्वारल ऑफ़ दी एनशिएण्ट एण्ड दी मॉडर्न्स से व्युत्पन्न हुआ था - जिसमे यह बहस की गयी थी कि: "क्या आधुनिक संस्कृति शास्त्रीय (यूनानी-रोमन) संस्कृति से बेहतर है?" - और यह बहस 1690 के दशक के आरम्भ में अकादमी फ्रान्कैस के बीच साहित्यिक और इन प्रयोगों के अनुसार, "आधुनिकता" का तात्पर्य था हाल के अतीत का त्याग करना, एक नई शुरुआत का पक्ष लेना और ऐतिहासिक मूल की पुनर्व्याख्या करना। इसके अलावा, "आधुनिकता" और "आधुनिक" के बीच अन्तर 19 वीं सदी (2007 देलाण्टी) तक नहीं उभरा था। आधुनिकता के चरण [ ] मार्शल बर्मन की एक पुस्तक (बर्मन 1983) के अनुसार आधुनिकता को तीन पारम्परिक चरणों में वर्गीकृत किया गया है (जिसे पीटर ओसबोर्न द्वारा क्रमशः...

Recent questions from topic समाजशास्त्र एवं समाज

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समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा हिंदी में

इसआर्टिकलमेंआप समाजशास्त्रकाअर्थएवंपरिभाषाकोहिंदीमेंजानेंगे। Samajshashtra ka arth in Hindi. यहआर्टिकलउनसभीलोगोंकेलिएहैजोसमाजशास्त्रकाअर्थजाननाचाहतेहैंयासमाजशास्त्रकोअभीपढ़नाशुरूकरनाचाहतेहैं Sociologyहोताहैऔरआपलोगोंकोकईपुस्तकेंइंग्लिशभाषामेंहीमिलीहोंगीसमाजशास्त्रकी इसआर्टिकलकेद्वाराआपजानेंगेकि तोचलिएजानतेहैंसमाजशास्त्रकाअर्थहिंदीमें सामाजिकविज्ञानके । लेकिनसामाजिक संबंधों औरसामाजिकसंबंधों केअध्यायकेमहत्व कोलेकर इसविषयमेंकाफीवृद्धिहुईहै। यहकार्यप्रणाली, कार्यक्षेत्रऔरदृष्टिकोणमेंकाफीविकसितहै।अबहरसामाजिक यहमुख्यरूपसेलोगोंकेदृष्टिकोणऔरव्यवहारपरऔरकैसेसमाजस्थापितऔरबदलतेहैं, परसामाजिकसंबंधोंकेप्रभावपरकेंद्रितहै। अध्ययनकेक्षेत्रकेरूपमें इसकासंबंधप्रेम, गरीबी, अनुरूपता, प्रौद्योगिकी, भेदभाव, बीमारी, अलगाव, अतिवृष्टिऔरसमुदायसेहै ।

समाजशास्त्र का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं

samajshastra arth paribhasha visheshta;ऑगस्त काॅम्टे को समाजशास्त्र का जन्मदाता कहा जाता हैं। ऑगस्त का विचार था कि जिस प्रकार भौतिकी वस्तुओं का अध्ययन करने के लिए भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, जीवशास्त्र आदि विज्ञान हैं, ठीक उसी प्रकार सामाजिक जीवन का अध्ययन करने के लिए सामाजिक विज्ञान की आवश्यकता हैं। ऑगस्त कॉम्टे से इसे 'सामाजिक भौतिकशास्त्र का नाम दिया। इसके बाद सन् 1838 मे काॅम्टे ने ही इसे समाजशास्त्र के नाम दिया था। समाजशास्त्र का अर्थ (samajshastra kya hai) गिडिंग्स के शब्दों में, "समाजशास्त्र समग्ररूप से समाज का क्रमबद्ध वर्णन और व्याख्या हैं।" गिडिंग्स की इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि समाजशास्त्र समाज के बारे मे हैं। यह समाज का वर्णन अर्थात् सामाजिक संबंधों व घटनाओं का वर्णन करता है। यह वर्णन कल्पनात्मक एवं संशयात्मक नही बल्कि व्यवस्थित व क्रमबद्ध है। यह अन्तरात्मा की आवाज या भावना से उद्देलित नही अपितु व्यवस्थित निरीक्षण एवं परीक्षण पर आधारित है। इस संबंध मे दूसरी बात जिसकी ओर गिडिंग्स ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है वह यह है कि बल्कि यह उसकी क्रमबद्ध व्याख्या भी करता है। समाजशास्त्र सामाजिक विज्ञान के अन्य विषयों, जैसे अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान की अपेक्षा, एक नया विषय है। हम कह सकते हैं कि यह विषय लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराना है, किन्तु इस विषय का तेजी से विकास पिछले 50-60 वर्षों में ही हुआ है। इसका एक कारण, खासतौर से द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की सामाजिक स्थितियों में लोगों के व्यवहार को समझना हो सकता है। सामाजिक विज्ञान के सभी विषयों का संबंध लोगों के व्यवहार से है, परन्तु इनमें से प्रत्येक विषय अलग-अलग पहलू का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र का संबंध सामान्य रू...

सामाजिक स्तरीकरण

अनुक्रम • 1 परिचय • 2 स्तरीकरण के मापदंड व आधार • 2.1 वर्ग पर आधारित स्तरीकरण • 2.2 जाति पर आधारित स्तरीकरण की प्रकृति की विवेचना कीजिए • 3 इन्हें भी देखें परिचय [ ] जहाँ तक सामाजिक स्तरीकरण का प्रश्न है इसे परिभाषित करते हुए स्तरीकरण के मापदंड व आधार [ ] सामाजिक स्तरीकरण के मापदंड व आधार सभी समाज में अलग-अलग होते हैं परंतु फिर भी यहाँ कुछ मापदंडों के आधार पर स्तरीकरण की प्रक्रिया को एक सार्वभौमिक अवधारणा के रूप में समझने की कोशिश की गयी है। स्तरीकरण के संदर्भ में निम्न उपागम की चर्चा की जाती है- • (क) प्रतिष्ठात्मक उपागम (Reputational Approach) • (ख) आत्मनिष्ठ उपागम (Subjective Approach) • (ग) वस्तुनिष्ठ उपागम (Objective Approach) ब्रूम तथा सेल्जनिक ने उपर्युक्त लिखे तीनों उपागमों के द्वारा स्तरीकरण को समझाया है। उनका यह मानना था कि स्तरीकरण का अध्ययन इन तीनों उपागमों को एक विधि मानकर किया जा सकता है। प्रतिष्ठात्मक उपागम में स्तरीकरण का अध्ययन करते हुए यह पूछा जा सकता है कि लोग अपने आप को कैसे वर्गीकृत करते हैं? क्या मापदंड प्रयोग में लाते हैं? अपनी स्थिति का आकलन करने के लिए, उन श्रेणियों को वो कैसे देखते हैं और उन मापदंडों को कैसे क्रमबद्ध करते हैं? आत्मनिष्ठ उपागम में भी लोगों से यह पूछा जाता है कि वो अपने आपको दूसरे व्यक्ति या समूह की तुलना में स्वयं को या जिस समूह के हिस्से हैं उसे दूसरे के मुकाबले कैसे आकलन करते हैं। • (क) आर्थिक संपत्ति तथा आर्थिक लाभ के अवसर पर नियंत्रण • (ख) राजनीतिक सत्ता के ऊपर नियंत्रण • (ग) सामाजिक स्थान व प्रतिष्ठा के ऊपर नियंत्रण मैक्स वेबर का यह मानना था कि उपर्युक्त तीनों आधारों को एक दूसरे से अलग करके देखना शायद संभव न हो इसलिए इन तीनों ...

समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान के संबंधों की विवेचना कीजिए।

समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान दोनों परस्पर संबंधित सामाजिक विज्ञान हैं। समाजशास्त्र सामाजिक क्रियाओं से संबंधित हैं, जबकि मनोविज्ञान मानसिक दशाओं से संबंधित है। आज अधिकांश विद्वान मनोविज्ञान को भी व्यवहार के अध्ययन के रूप में परिभाषित करने लगे हैं। जे०एस० मिल का विचार है कि मस्तिष्क की विधियों के बिना सामान्य सामाजिक विज्ञान स्थापित ही नहीं हो सकता अर्थात् समाजशास्त्र को आधार प्रदान करने वाला विज्ञान मनोविज्ञान है। जिंसबर्ग तथा कुछ अन्य समाजशास्त्रियों का यह मत है कि समाजशास्त्रीय सामान्यीकरण मनोवैज्ञानिक नियमों से संबंधित किए जाने पर अधिक दृढ़ता से स्थापित किए जा सकते हैं। वास्तव में, यह मिल और दुर्णीम के मतों में मध्य स्थिति को प्रकट करने वाला दृष्टिकोण है। नैडल का भी यही विचार है कि मनोविज्ञान की सहायता से सामाजिक जाँच अच्छी तरह से की जा सकती है। Categories • • (31.9k) • (8.8k) • (764k) • (248k) • (2.9k) • (5.2k) • (664) • (121k) • (72.1k) • (3.8k) • (19.6k) • (1.4k) • (14.2k) • (12.5k) • (9.3k) • (7.7k) • (3.9k) • (6.7k) • (63.8k) • (26.6k) • (23.7k) • (14.6k) • (25.7k) • (530) • (84) • (766) • (49.1k) • (63.8k) • (1.8k) • (59.3k) • (24.5k)

MA Semester

लोगों की राय • भाषा विज्ञान एवं हिन्दी भाषा 1 copy of bhasha vigyan evm hindi bhasha lakshmikant panday and pramila avasthi Send by india post by parcel Mukesh kumar Sharma • भाषा विज्ञान एवं हिन्दी भाषा Mukesh kumar Sharma • ईजी नोट्स-2020 बी.कॉम. द्वितीय वर्ष चतुर्थ प्रश्नपत्र - आयकर Shantanu Mishra • लोक-वित्त UTKARSH PANDEY • ईजी नोट्स-2020 बी. ए. प्रथम वर्ष रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन प्रथम प्रश्नपत्र Rohit Singh Bainsla दुर्खीम का समाजशास्त्र में योगदान (Durkheim's Contribution in Sociology) 'समाजशास्त्र' के प्रमुख विचारक दुर्खीम ने समाजशास्त्र को एक विज्ञान का रूप प्रदान करने में महत्वपूर्ण कार्य किया है। आपने उपर्युक्त वर्णित लेखों, शोध-प्रबन्धों, विनिबन्धों तथा पुस्तकों के द्वारा समाजशास्त्र की बड़ी सेवा की है। आपने इस नवीन विषय समाजशास्त्र को निम्नलिखित सिद्धान्त, अवधारणाएँ, कार्य-प्रणाली एवं प्रारूप प्रदान किये हैं - सिद्धान्त (Theory) 1. समाज में श्रम के विभाजन का सिद्धान्त, 2. आत्महत्या, 3. धर्म का सिद्धान्त, 4. मूल्यों का सिद्धान्त, 5. नैतिकता का सिद्धान्त, 6. ज्ञान का समाजशास्त्र। अवधारणाएँ (Concepts) 1. सामाजिक तथ्य, 2. सामूहिक चेतना, 3. सामूहिक अन्तर्विवेक, 4. सामूहिक प्रतिनिधान, 5. सामाजिक एकता, 6. प्रकार्यवाद, 7. आत्महत्या, 8. आदर्शहीनता, 9. यांत्रिक तथा जैविक एकता, 10. कानून, अपराध तथा दण्ड की अवधारणाएँ। कार्य-प्रणाली (Methodology) 1. 'सामाजिक तथ्य' वस्तुएँ हैं जो मापे जा सकते हैं, 2. प्रस्थापनाएँ तथ्यात्मक सामग्री पर आधारित होती हैं, 3. तुलना, 4. सहवर्ती विचरण द्वारा प्रमाण। प्रारूप (Typology) यांत्रिक एवं जैविक एकात्मकता। अनुक्रम• • • • • • • • • • • ...

समाजशास्त्र। समाजशास्त्र का अर्थ। sociology

Table of Contents • • • • • समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा Samajshastra समाजशास्त्र एक नया अनुशासन है अपने शाब्दिक अर्थ में समाजशास्त्र का अर्थ है – समाज का विज्ञान। इसके लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द सोशियोलॉजी लेटिन भाषा के सोसस तथा ग्रीक भाषा के लोगस दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ क्रमशः समाज का विज्ञान है। इस प्रकार सोशियोलॉजी शब्द का अर्थ भी समाज का विज्ञान होता है। परंतु समाज के बारे में समाजशास्त्रियों के भिन्न – भिन्न मत है इसलिए समाजशास्त्र को भी उन्होंने भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है। अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता आ रहा है। जैसे भारतीय समाज, ब्राह्मण समाज, वैश्य समाज, जैन समाज, शिक्षित समाज, धनी समाज, आदि। समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्यन सभ्यता के लिए विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था। हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।इनमें पति के पत्नी के प्रति पत्नी के पति के प्रति, माता – पिता के पुत्र के प्रति, पुत्र के माता – पिता के प्रति, गुरु के शिष्य के प्रति, शिष्य के गुरु के प्रति, समाज में एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के प्रति, राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति कर्तव्यों की व्याख्या की गई है। मनु द्वारा विरचित मनूस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था और उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति, व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा राज्य सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को निश्चित किया गया है। भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान रहा है इसे भारतीय समाजशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जा सकता है। अन्य महत्वपूर्ण लेख...

समाजशास्त्र का विषय

प्रश्न; समाजशास्त्र के विषय-क्षेत्र का वर्णन कीजिए। अथवा" समाजशास्त्र के क्षेत्र की व्याख्या कीजिए। अथवा" समाजशास्त्र के क्षेत्र के विषय में प्रचलित सम्प्रदायों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। उत्तर-- समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र इंकल्स कहते हैं कि," समाजशास्त्र परिवर्तनशील समाज का अध्ययन करता है, इसलिए समाजशास्त्र के अध्ययन की न तो कोई सीमा निर्धारित की जा सकती है और न ही इसके अध्ययन क्षेत्र को बिल्कुल स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जा सकता है।" क्षेत्र का तात्पर्य यह है कि यह विज्ञान कहाँ तक फैला हुआ है। अन्य शब्दों में क्षेत्र का अर्थ उन सम्भावित सीमाओं से है जिनके अन्तर्गत किसी विषय या विज्ञान का अध्ययन किया जा सकता है। यह भी पढ़े; प्राय: कुछ लोग विषय क्षेत्र (Scope) तथा विषय-वस्तु (Subject-matter) को एक ही समझ लेते हैं जबकि दोनों में पर्याप्त अन्तर है। विषय क्षेत्र का तात्पर्य वे सम्भावित सीमाएँ हैं जहाँ तक किसी विषय का अध्ययन सम्भव होता है, जबकि विषय-वस्तु वे निश्चित सीमाएँ हैं जिनके अन्तर्गत अध्ययन किया जा सकता है। प्रत्येक सामाजिक विज्ञान व्यक्तियों के सामाजिक जीवन को तथा विभिन्न घटनाओं को अपने-अपने दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करता है। उदाहरणार्थ, अर्थशास्त्र आर्थिक दृष्टिकोण से राजनीतिशास्त्र राजनीतिक दृष्टिकोण से, मनोविज्ञान मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से तथा समाजशास्त्र सामाजिक दृष्टिकोण से घटनाओं का अध्ययन करते हैं। विभिन्न दृष्टिकोण होने के बावजूद किसी भी सामाजिक विज्ञान का विषय क्षेत्र निर्धारित करना एक कठिन कार्य है एक आधुनिक विज्ञान होने के नाते समाजशास्त्र में यह कठिनाई अन्य विज्ञानों की अपेक्षा कहीं अधिक है। समाजशास्त्र एक नव-विकसित एवं प्रगतिशील विज्ञान हैं इस स्थि...

समाज एवं शिक्षा और परिभाषा

सामान्य रूप से दो या दो से अधिक व्यक्तियों के समूह को समाज कहते हैं। व्यक्तियों इन समूहों का अध्ययन सामाजिक विज्ञान के अंतर्गत किया जाता है। मानव शास्त्र में मनुष्यों के किसी भी समूह को समाज की संज्ञा दी जाती है। यहां बता दें कि आदिम समुदाय को भी समाज की संज्ञा दी जाती है। भूगोल के आधार पर भी समान सभ्यता वाले लोगों के समुदाय को समाज कहते हैं। जैसे यूरोपीय समाज , एशियाई समाज , या भारतीय समाज। धर्म शास्त्र में धर्म के आधार पर समाज का वर्गीकरण किया जाता है। जैसे हिंदू समाज , ईसाई समाज , और मुसलमान समाज। राजनीति शास्त्र में राज्य विशेष के लोगों को समाज कहते हैं जैसे भारतीय समाज , पाकिस्तानी समाज , नेपाली समाज इत्यादि। समाजशास्त्र समाजशास्त्रीय अर्थ में व्यक्तियों को समाज नहीं कहते अपितु समाज के व्यक्तियों में पाए जाने वाले सामाजिक संबंधों की पारस्परिक व्यवस्था की संरचना को समाज कहते हैं। अब विचारणीय प्रश्न यह है कि सामाजिक संबंध क्या है ? जब दो या दो से अधिक व्यक्ति आपस में अपने विचारों , परंपराओं ,अपने लगाव , को व्यक्त करता है दूसरा व्यक्ति उस पर अपनी प्रतिक्रिया देता है वहां सामाजिक संबंध स्थापित होता है। यह आवश्यक नहीं कि यह संबंध मधुर और सहयोगात्मक ही हो यह कटु और संघर्षात्मक भी हो सकते हैं। समाजशास्त्र में इन दोनों प्रकार के संबंधों का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार समाज का सर्वप्रथम मूल तत्व दो या दो से अधिक व्यक्तियों की पारस्परिक जागरूकता है। SOCIOLOGY दो या दो से अधिक व्यक्तियों के एक दूसरे के प्रति सचेत होने के लिए यह आवश्यक है कि उनके उद्देश्य अथवा विचारों में या तो समानता हो या भिन्नता। इस प्रकार समानता अथवा भिन्नता समाज का दूसरा मूल तत्व होता है। यह पारस्परिक जागर...