विष्णु स्तुति

  1. Vishnu Chalisa in Hindi 2022
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Vishnu Chalisa in Hindi 2022

विष्णु चालीसा हिंदी में (Vishnu Chalisa with PDF) 2022 – हम सब जानते हैं के भगवान विष्णु हिन्दू धर्म के प्रमुख त्रिदेवो में से है । हिन्दू शास्त्रों की मान्यतानुसार समस्त जगत का पालन भगवन श्री हरि विष्णु जी ( Vishnu Chalisa Hindi) करते हैं एवं वह लक्ष्मी की साथ क्षीरसागर में वास करते हैं . Read, Print and Download विष्णु को दया-प्रेम का सागर माना जाता है। अगर आप सच्चे मन से भगवन विष्णु की पूजा करते हैं तो वह अपने प्रत्येक भक्त ही की समस्त इच्छाएं पूर्ण करते हैं। श्री विष्णु चालीसा को डाउनलोड करे (Download , , , , PDF, JPG and HTML) हर कोई इस विष्णु चालीसा को पीडीएफ में डाउनलोड (PDF Download), जेपीजी रूप में (Image Save) या प्रिंट (Print) सकते हैं। Related- , , , , आइए पढ़ते हैं श्री विष्णु जी की चालीसा: विष्णु चालीसा हिंदी में – श्री विष्णु जी की चालीसा ।।दोहा।। (Vishnu Chalisa in Hindi) विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय । कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥ ।।चौपाई।। (Vishnu Chalisa in Hindi) नमो विष्णु भगवान खरारी,कष्ट नशावन अखिल बिहारी । प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी,त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥1॥ सुन्दर रूप मनोहर सूरत,सरल स्वभाव मोहनी मूरत । तन पर पीताम्बर अति सोहत,बैजन्ती माला मन मोहत ॥2॥ शंख चक्र कर गदा बिराजे,देखत दैत्य असुर दल भाजे । सत्य धर्म मद लोभ न गाजे,काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥3॥ सन्तभक्त सज्जन मनरंजन,दनुज असुर दुष्टन दल गंजन । सुख उपजाय कष्ट सब भंजन,दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥4॥ पाप काट भव सिन्धु उतारण,कष्ट नाशकर भक्त उबारण । करत अनेक रूप प्रभु धारण,केवल आप भक्ति के कारण ॥5॥ Vishnu Chalisa in Hindi धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा,तब तुम रूप राम का धारा । भार उतार असुर द...

विष्णु स्तुति

विष्णु स्तुति विष्णु स्तुति एक ऐसा स्तोत्र जो विष्णु ने कृष्ण के लिया किया था पुरुषोत्तम मास में जब भगवान् ने भगवान् की स्तुति की तब भगवान् ने भगवान् को जो वरदान दिया सुबह सुबह उठकर सिर्फ एक बार बोले यह भगवान् कृष्ण ने वरदान दिया है सभी पापो का विनाश कर देगा बुरे स्वप्नों का नाश हो जाएगा मान सन्मान की प्राप्ति होगी || श्री विष्णुरुवाच || वन्दे विष्णुं गुणातीतं गोविन्दमेकअक्षरं | अव्यक्तमव्ययं व्यक्तं गोपवेशविधायिनं || किशोरवयशं शान्तं गोपीकांतं मनोहरं | नवीननीरदश्यामं कोटिकन्दर्पसुन्दरं || वृन्दावनवनाभ्यन्ते रासमण्डलसंस्थितं | लसत्पीतपटं सौम्यं त्रिमंगळलिताकृतिं || रासेस्वरं रासवासं रासाल्लाससमुत्सुकं | द्विभुजं मुरलोहस्तं पीतवाससमच्युतं || इत्येवमुक्त्वा तं नत्वा रत्नसिंहासने वरे | पार्षदैः सत्कृतो विष्णुः स उवास तदाज्ञया || श्री नारायण उवाच इति विष्णुकृतं स्तोत्रं प्रातरूत्थाय यः पठेत | पापानि तस्य नश्यन्ति दुःस्वप्नः सत्फलप्रदः || भक्तिर्भवति गोविन्दे पुत्रपौत्रविवर्द्धिनी | अकीर्तिः क्षयमाप्नोति सत्कीर्तिर्वर्द्धते चिरं || || अस्तु || • ► (76) • ► (18) • ► (23) • ► (16) • ► (15) • ► (4) • ► (103) • ► (4) • ► (3) • ► (3) • ► (28) • ► (3) • ► (15) • ► (26) • ► (9) • ► (12) • ► (100) • ► (6) • ► (1) • ► (7) • ► (5) • ► (9) • ► (12) • ► (14) • ► (5) • ► (8) • ► (13) • ► (20) • ▼ (117) • ► (9) • ► (7) • ► (11) • ▼ (6) • • • • • • • ► (1) • ► (16) • ► (5) • ► (11) • ► (10) • ► (24) • ► (8) • ► (9) • ► (152) • ► (6) • ► (6) • ► (9) • ► (8) • ► (12) • ► (25) • ► (18) • ► (55) • ► (13)

श्रीविष्णुसूक्ति

शुक्लाम्बरधरं विष्णु शशिवर्ण चतुर्भुजम्। प्रसन्नवदनं ध्यायेत सर्वविघ्नोपशान्तये॥१॥ स्वच्छ वस्त्रधारी, चन्द्रमाके समान शुक्लवर्ण, चतुर्भुज, प्रसन्नवदन विष्णुका सर्वविघ्नोंकी शान्तिके लिये ध्यान करे॥ १॥ न नाकपृष्ठं न च पारमेष्ठ्यं न सार्वभौमं न रसाधिपत्यम्। न योगसिद्धीरपुनर्भवं वा समञ्जस त्वा विरहय्य काझे॥२॥ हे समदर्शिन् ! आपको छोड़कर मुझे न तो स्वर्गकी, न ब्रह्मलोककी, न सार्वभौम साम्राज्यकी, न पृथ्वीपतित्वकी, न योगसिद्धियोंकी और न जन्म-मरणसे छूटनेकी ही इच्छा है॥ २॥ अजातपक्षा इव मातरं खगाः स्तन्यं यथा वत्सतराः क्षुधार्ताः। प्रियं प्रियेव व्युषितं विषण्णा मनोऽरविन्दाक्ष दिदृक्षते त्वाम्॥३॥ बिना पङ्खोंवाले पक्षिशावक जिस प्रकार अपनी माताके लिये उत्सुक रहते हैं, भूखे बछड़े जैसे दूधके लिये व्याकुल रहते हैं तथा विरहिणी स्त्री जैसे व्यथित होकर अपने प्रवासी पतिकी बाट देखती है; हे कमलनयन ! मेरा मन भी उसी प्रकार आपके दर्शनोंके लिये लालायित हो रहा है॥ ३॥ यन्मूर्ध्नि मे श्रुतिशिरस्सु भाति यस्मि- न्नस्मन्मनोरथपथः सकलः समेति। स्तोष्यामि नः कुलधनं कुलदैवतं तत् पादारविन्दमरविन्दविलोचनस्य ।।४।। कमलनयन भगवान् विष्णुके जो चरणारविन्द मेरे मस्तकपर तथा वेदोंके शिरपर सुशोभित होते हैं और जिनमें मेरे मनोरथोंके सभी मार्ग मिलते हैं तथा जो मेरे कुलधन और कुलदेवता हैं, उनकी मैं वन्दना करता हूँ॥ ४॥ श्रीमद्भा०६।११। २५-२६ । तत्त्वेन यस्य महिमार्णवशीकराणुः शक्यो न मातुमपि सर्वपितामहाद्यैः। कर्तुं तदीयमहिमस्तुतिमुद्यताय मह्यं नमोस्तु कवये निरपत्रपाय॥५॥* जिनकी महिमारूप समुद्रके छोटे-से-छोटे जलकणका भी मान बतलानेको शिव और ब्रह्मा आदि देवता भी समर्थ नहीं हैं; उन्हींकी महिमाका स्तवन करनेके लिये उद्यत हुए मुझ निर्ल...

विष्णु स्तुति

इन्द्रद्युम्न ब्राह्मण ने श्रीहरि के दर्शन के लिए आराधना की। तब उन आत्मस्वरूप एवं अविनाशी भगवान् विष्णु को समीप आते हुए देखकर घुटने टेककर गरुड़ध्वज विष्णु को वह स्तुति करने लगा। विष्णु स्तुति इन्द्रद्युम्नकृत विष्णु स्तुति इन्द्रद्युम्नकृत इन्द्रद्युम्न उवाच । यज्ञेशाच्युत गोविन्द माधवानन्त केशव । कुष्ण विष्णो हृषीकेश तुभ्यं विश्वात्मने नमः ।। १.६९ इन्द्रद्युम्न ने (स्तुति करते हुए) कहा-हे यज्ञेश, अच्युत, गोविन्द, माधव, अनन्त, केशव, कृष्ण, विष्णु, हृषीकेश, आप विश्वात्मा को मेरा नमस्कार है। नमोऽस्तु ते पुराणाय हरये विश्वमूर्तये । सर्गस्थितिविनाशानां हेतवेऽनन्तशक्तये ।। १.७० पुराणपुरुष, हरि, विश्वमूर्ति, उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय के कारणभूत तथा अनन्त शक्तिसम्पन्न आप के लिए मेरा प्रणाम है। निर्गुणाय नमस्तुभ्यं निष्कलायामलात्मने । पुरुषाय नमस्तेस्तु विश्वरूपाय ते नमः ।। १.७१ निर्गुण आपको नमस्कार है। विशुद्ध रूप वाले आपको बार-बार नमस्कार है। पुरुषोत्तम को नमस्कार है। विश्वरूपधारी आपको मेरा प्रणाम। नमस्ते वासुदेवाय विष्णवे विश्वयोनये । आदिमध्यान्तहीनाय ज्ञानगम्याय ते नमः ।। १.७२ वासुदेव, विष्णु, विश्वयोनि, आदि-मध्य और अन्त से रहित तथा ज्ञान के द्वारा जानने योग्य आपको नमस्कार है। नमस्ते निर्विकाराय निष्प्रपञ्चाय ते नमः । भेदाभेदविहीनाय नमोऽस्त्वानन्दरूपिणे ।। १.७३ निर्विकार, प्रपञ्च रहित आप के लिए मेरा नमस्कार है। भेद और अभेद से विहीन तथा आनन्दस्वरूप आपको मेरा नमस्कार है। नमस्ताराय शान्ताय नमोऽप्रतिहतात्मने । अनन्तमूर्तये तुभ्यममूर्ताय नमो नमः ।। १.७४ तारकमय तथा शान्तस्वरूप आप को नमस्कार है। अप्रतिहतात्मा आप को नमस्कार। आपका रूप अनन्त और अमूर्त है, आपको बार-बार नमस्कार है। नमस्ते...